आओ यदुकुल सूर्य फिर से

कर्मपथ पर लग गया अधिकार का पहरा,

आओ यदुकुल सूर्य फिर से टेरती तुमको धरा।।


क्षुद्र अंतर्द्वंद्व हर पल बँध गया हर श्वांस में,

घात ही लगने लगा अब प्यार और विश्वास में,

आ जगत डसने लगी हैं भ्रष्टता की व्यांलियाँ,

तोड़ डाली हैं घृणा ने मृदुलता की डालियाँ,

सत्य के संदर्भ में है झूठ का कचरा।


आओ यदुकुल सूर्य फिर से टेरती तुमको धरा।।


भटकते नैपथ्य  में सद्भावना के प्राण,

गिरगिटी पहले मुखौटे आज हर इंसान,

दीखती हैं हर तरफ नैराश्य की राहें,

पाप अत्याचार नित फैला रहा बाँहें,

नजर आता हर तरफ दु:शासनी चेहरा।


आओ यदुकुल सूर्य फिर से टेरती तुमको धरा।।


छोड़कर कर्तव्य थामा अधिकृती दामन,

हो गया कैसा विषैला कंस का शासन,

अब विचारों में नहीं है क्रांति की झंकार,

लूटतीं कलुषित हवाएँ प्रकृति का श्रृंगार,

छा गए हैं गगन में विष रस भरे बदरा।


आओ यदुकुल सूर्य फिर से टेरती तुमको धरा।।


छल कपट की चल रहा है चाल दुर्योधन,

मोह में फँस कर्म भूला आज का अर्जुन,

आज हो कुरुक्षेत्र में गीता का अभिसिंचन

राधिका मधुबन पुकारे आओ नंद नंदन,

सिर मयूरी पंख का फिर बाँधकर सेहरा।


कर्म पथ पर लग गया अधिकार का पहरा।

आओ यदुकुल सूर्य फिर से टेरती तुमको धरा।।


रचयिता

यशोधरा यादव 'यशो'

सहायक अध्यापक,

कंपोजिट विद्यालय सुरहरा,

विकास खण्ड-एत्मादपुर,

जनपद-आगरा।



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