जय श्री कृष्ण
होंठों पर मुस्कान,
प्रेम का प्रतीक,
अधरों पर बाँसुरी,
शीश पर मोर पंख,
ऐसे हैं, श्री कृष्ण भगवान।
राम सूर्य, कृष्ण चन्द्र,
है इसीलिए जमीं जन्नत,
जहाँ में गूँजे एक ही स्वर,
प्रेम, प्रेम, प्रेम।
प्रेम का संदेश देते हैं श्री कृष्ण,
जगाना है प्रेम का भाव,
प्रेम से बढ़कर कुछ नहीं,
प्रेम ही मानवता का आधार।
प्रेम से ही हर रिश्ता गुलज़ार,
प्रेम को बना लो व्यापार,
हो प्रेम के वशीभूत,
प्रभु ने लिया मानव अवतार।
हर उद्देश्य में हो हित,
है यही धर्म,
फिर न हो कोई महाभारत,
है यह गीता का ज्ञान।
कर्म से ही जीवन,
कर्म में ही जीवन,
कह रहे श्री कृष्ण भगवान,
है यह गीता का ज्ञान।
बोलो हरे राम, हरे कृष्ण,
कृष्ण, कृष्ण, कृष्ण,
कृष्णमय हो सारा संसार,
हो प्रेम का विस्तार।।
रचयिता
अर्चना गुप्ता,
प्रभारी अध्यापिका,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय सिजौरा,
विकास खण्ड-बंगरा,
जिला-झाँसी।
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