शिक्षक दिवस

अज्ञानता का तिमिर हटाने  को,

शिक्षक दीपक बन जलता है।

जीवन कौशल सिखलाकर के,

उन्नति के पथ पर ले चलता है।।


अभिमान, मोह और लोभ नहीं

वह परम पूज्य ज्ञानी है।

अन्तर्मन में कोई भेदभाव नहीं,

जीवन की सफलता की कहानी है।


अधरों पर मुस्कान लाने को,

वह पुष्प बनकर खिलता है।

असफलताओं से मत घबराना,

विजय पथ पर चलना सिखलाता है।।


जीवन की तिमिर राहों में,

प्रकाश पुंज बन जाता है।

नाव भँवर में देख डूबती,

तुरन्त सारथी बन जाता है।।


हिमालय का वह मुकुट बना है,

वह सागर का मोती है।

इसलिए जमीं के कण-कण में,

गुरूओं की पूजा होती है।।


अमूल्य उपहार उसके जीवन का,

मंजिल पर सबको पहुँचाना है।

कितनी भी जमीं बंजर हो,

उस पर भी फूल खिलाना है।।


रचयिता

अजय विक्रम सिंह, 
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मरहैया,
विकास क्षेत्र-जैथरा,
जनपद-एटा।



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