मेरा हिन्द

ये हिन्द है हमारा,

हम हिन्द के हैं यारों।

हम हिन्द पे लुटाएँगे,

अपनी जान यारों।


हिन्द का है प्रहरी,

पर्वतराज हिमालय।

है हिन्द मेरी जन्नत,

है हिन्द मेरा आलय।


तट पे गंगा यमुना के,

हैं कितने प्यारे घाट।

मेरे हिन्द के हैं देखो,

कितने निराले ठाठ।


विभिन्नता में एकता,

मेरे हिन्द की विशेषता।

मेरे हिन्द की धरा पे,

हैं वास करते देवता।


कहीं पे ऊँची चोटियाँ,

और है कहीं पे रेत।

कहीं धरा है बंजर,

कहीं लहलहाएँ खेत।


कहीं पे चोली घाघरा,

कहीं साड़ी की बहार।

कहीं पे धोती कुर्ता,

है कहीं पे सलवार।


हैं कहीं पे गोर चिट्ठे,

कहीं पे साँवले।

मेरे हिन्द के वासी हैं,

थोड़े से बावले।


कहीं पे हिन्दी, तेलुगु,

कहीं पे पंजाबी।

मेरे हिन्द की भाषा का,

ना कोई जवाबी।


है रंग-रूप,वेश-भूषा,

और भाषा हैं अनेक।

दुनिया में मेरा हिन्द है,

बस केवल एक।


है नाज हमें हिन्द पे,

सुन लो ओ प्यारों।

तन मन धन हिन्द पे,

है कुर्बान ओ यारों।


रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।

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