१७२- दीपनारायण मिश्र, प्रा० वि० घड़ियालीपुर, कड़ा, कौशाम्बी
*एक विद्यालय की आत्मकथा*
जी हाँ मित्रों मैं हूँ *“प्राथमिक विद्यालय घड़ियालीपुर, कड़ा जनपद कौशाम्बी”*
*_♂मित्रों_* आज हम *मिशन शिक्षण संवाद* के माध्यम से आपको एक विद्यालय की आत्मकथा से परिचय करा रहे हैं जिसने अपने बीस वर्ष के जीवन को किन उतार-चढ़ाव के साथ अपने विद्यार्थियों को शिक्षित करने का प्रयास किया।
_तो आइए चलते है विद्यालय की आत्मकथा की ओर:-_
_तो आइए चलते है विद्यालय की आत्मकथा की ओर:-_
♂ मित्रों आपको सुनकर अचरज लग रहा होगा किंतु ये आत्मकथा मेरी अर्थात *“प्राथमिक विद्यालय घड़ियालीपुर”* की ही है। हालाँकि मेरा निर्माण हुए 20 वर्ष से अधिक हो गए किंतु विगत 2 वर्षों के अनुभवों के आधार पर ये आत्मकथा लिखने को विवश हुआ क्योंकि इन्ही वर्षों में मुझे स्वयं के मंदिर होने का सुखद एहसास हुआ तथा मेरा सम्मान भी पहली बार 'ब' श्रेणी से 'अ' श्रेणी में हुआ है, जबकि मैंने अपने जीवन के कितने ही पुजारियों को प्रधान पुजारी यहाँ आकर बनते देखा है।
लेकिन हमें अपने को सुख, संतोष के साथ आदर्श मन्दिर होने का सुखद एहसास की
शुरुआत हुई थी दिनांक 07/11/2015 से जब मेरे यहाँ एक नए पुजारी *आदरणीय दीपनारायण मिश्र जी* की नियुक्ति हुई थी। ♂उस समय मैं 65 बच्चों एवं 2 पुजारियों के साथ अपनी बिगड़ी अव्यवस्थायों (बिगड़े हैंडपंप, गेट के बगल से सामने टूटी नाली से हो रहे जल भराव एवं गाँव वालों के अतिक्रमण) में ही संतोष का अनुभव कर रहा था। लेकिन इनके आते ही हमें एक सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होने लगा था जब अगले दिन से ही प्रार्थना के पश्चात् प्रत्येक बच्चे से परिचय एवं उनको अपना intro अंग्रेजी में देने की शुरुआत तथा मध्याह्न भोजन से पहले उन्होंने भोजन मन्त्र की शुरुआत हो चुकी थी। ये सब करते- करते शायद 4 से 5 महीने लगे होंगे जब प्रत्येक बच्चा अपना परिचय (intro) अंग्रेजी में देने लगे एवं ज्यादातर बच्चों को भोजन मन्त्र याद हो गया। इन्हीं 4 से 5 महीनों में प्रार्थना सभा के पश्चात अब मेरी क्यारियों को स्वयं खुरपी से व्यवस्थित करना एवं बच्चों संग नयी क्यारियों का भी निर्माण शुरू हो गया। गेट के पास हो रहे जल भराव की समस्या चूँकि विद्यालय की ही समस्या थी। इसलिए कोई भी आगे नही आ रहा था जबकि *दीपनारायण जी* स्वयं उस जगह की घास प्रतिदिन हटा-हटा कर उस जगह को सीमित कर रहे थे। फिर जब उस जगह में एक ट्राली मिट्टी डलवा दी गयी और अब ये समस्या सामूहिक गाँव वालों की हो गयी तब जाकर सब लोगों ने मिलकर उस नाली को बनवाया और इस प्रकार इस समस्या का स्थायी ☺समाधान हो गया और इस जल भराव वाली जगह में ही फूल पौधे लगाकर इस जगह को सबसे ज्यादा हरा एवं मनभावन बना दिया है इसी जगह सब्जियां जैसे नेनुआ, तोरई, लौकी भी उगा ली जाती है एवं सर्दियों में धनिया पालक भी। इसी के साथ बहुत दिन से खराब हैंडपंप को स्वयं के प्रयास से ही सही करवाया गया जिसके बाद ही विद्यालय को हरा-भरा बनाने का प्रयास शुरू किया। मेरे प्रांगण में वट वृक्ष को लगाकर उसकी सेवा कोई अपने संतान की न करता हो ऐसी की जिसकी वजह से इस वर्ष 1 साल के हो जायेंगे वट वृक्ष महाराज। इसके साथ-साथ 2 कदम्ब, 1 अशोक, 1 अमरुद 1अन्य छायादार वृक्ष स्वयं लगा कर था एक नीम एवं जामुन को गोद लेकर तथा कई फूलदार पेड़ लगाकर प्रांगण को हरा-भरा बनाने का सार्थक प्रयास कर बनाया जिससे की पढाई प्राकृतिक परिवेश में भी हो सके। मेरी रसोई के पास तुलसी वृक्ष एवं प्रांगड़ में तुलसीचौरा की स्थापना कर एवं सामने की क्यारी में आकर्षक फूल लगाकर परिवेश को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करने का प्रयास किया।
शुरुआत हुई थी दिनांक 07/11/2015 से जब मेरे यहाँ एक नए पुजारी *आदरणीय दीपनारायण मिश्र जी* की नियुक्ति हुई थी। ♂उस समय मैं 65 बच्चों एवं 2 पुजारियों के साथ अपनी बिगड़ी अव्यवस्थायों (बिगड़े हैंडपंप, गेट के बगल से सामने टूटी नाली से हो रहे जल भराव एवं गाँव वालों के अतिक्रमण) में ही संतोष का अनुभव कर रहा था। लेकिन इनके आते ही हमें एक सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होने लगा था जब अगले दिन से ही प्रार्थना के पश्चात् प्रत्येक बच्चे से परिचय एवं उनको अपना intro अंग्रेजी में देने की शुरुआत तथा मध्याह्न भोजन से पहले उन्होंने भोजन मन्त्र की शुरुआत हो चुकी थी। ये सब करते- करते शायद 4 से 5 महीने लगे होंगे जब प्रत्येक बच्चा अपना परिचय (intro) अंग्रेजी में देने लगे एवं ज्यादातर बच्चों को भोजन मन्त्र याद हो गया। इन्हीं 4 से 5 महीनों में प्रार्थना सभा के पश्चात अब मेरी क्यारियों को स्वयं खुरपी से व्यवस्थित करना एवं बच्चों संग नयी क्यारियों का भी निर्माण शुरू हो गया। गेट के पास हो रहे जल भराव की समस्या चूँकि विद्यालय की ही समस्या थी। इसलिए कोई भी आगे नही आ रहा था जबकि *दीपनारायण जी* स्वयं उस जगह की घास प्रतिदिन हटा-हटा कर उस जगह को सीमित कर रहे थे। फिर जब उस जगह में एक ट्राली मिट्टी डलवा दी गयी और अब ये समस्या सामूहिक गाँव वालों की हो गयी तब जाकर सब लोगों ने मिलकर उस नाली को बनवाया और इस प्रकार इस समस्या का स्थायी ☺समाधान हो गया और इस जल भराव वाली जगह में ही फूल पौधे लगाकर इस जगह को सबसे ज्यादा हरा एवं मनभावन बना दिया है इसी जगह सब्जियां जैसे नेनुआ, तोरई, लौकी भी उगा ली जाती है एवं सर्दियों में धनिया पालक भी। इसी के साथ बहुत दिन से खराब हैंडपंप को स्वयं के प्रयास से ही सही करवाया गया जिसके बाद ही विद्यालय को हरा-भरा बनाने का प्रयास शुरू किया। मेरे प्रांगण में वट वृक्ष को लगाकर उसकी सेवा कोई अपने संतान की न करता हो ऐसी की जिसकी वजह से इस वर्ष 1 साल के हो जायेंगे वट वृक्ष महाराज। इसके साथ-साथ 2 कदम्ब, 1 अशोक, 1 अमरुद 1अन्य छायादार वृक्ष स्वयं लगा कर था एक नीम एवं जामुन को गोद लेकर तथा कई फूलदार पेड़ लगाकर प्रांगण को हरा-भरा बनाने का सार्थक प्रयास कर बनाया जिससे की पढाई प्राकृतिक परिवेश में भी हो सके। मेरी रसोई के पास तुलसी वृक्ष एवं प्रांगड़ में तुलसीचौरा की स्थापना कर एवं सामने की क्यारी में आकर्षक फूल लगाकर परिवेश को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करने का प्रयास किया।
अब विद्यालय में स्वयं tlm बनाकर आकर्षक बनाने का प्रयास किया। बच्चों को सामान्य ज्ञान की जानकारी से अवगत कराने से लेकर गुणवत्ता पूर्ण शिक्षण एवं शारीरिक विकास हेतु 露♂व्यायाम एवं योग तथा खेलकूद तक सभी गतिविधियां होने लगी।
इस सत्र में *बाल संसद का गठन एवं कक्षा प्रमुखों को नेम प्लेट* प्रदान कर जिम्मेदारी का एहसास कराया। हर जयंती में श्यामपट्ट में महापुरुषों के सुंदर चित्रों द्वारा उनके बारे में जानकारी देना तथा प्रत्येक त्यौहारों को बच्चों को दो- दो बार मनाने का मौका मिलने लगा एक बार विद्यालय एवं फिर घर में। विद्यालय में इन त्यौहारों को सबके साथ मनाने में बच्चे इतने खुश होते हैं जितना शायद घर में न हो पाते हों। पिछली दिवाली की एक फोटो को मैं सर्वश्रेष्ठ फोटो मानता हूँ। मुझे भी इन उत्सवों में बच्चों की ख़ुशी देखकर आत्मिक संतोष होने लगा। एक दो मौके ऐसे भी आये इन दो वर्षों में जब बच्चे अपने गुरु जी की अनुपस्थिति में स्वयं प्रार्थना कर अपनी-अपनी कक्षाओं में व्यवस्थित बैठ जाते थे बाद में *दीपनारायण जी* के आने पर उन्हें भी आत्मिक संतोष को महसूस करते मैंने देखा है।
珞इन्हीं सब प्रयास एवं गतिविधियों की वजह से सत्र 2017-18 में कुल नामांकन संख्या 101 तक जा पहुँची जो हालाँकि इतनी नहीं है कि मैं गर्व करूँ लेकिन 65 से 101 होने में खुश ज़रूर हूँ।
मेरी हर ज़रूरत को समझ कर उसको पूरा करने का ऐसा प्रयास करते हैं जैसे कि हमने उनसे संवाद द्वारा अवगत कराया हो इसी भावना को देख कर मुझे शिक्षक दिवस से पहले पिछले 2 वर्षों के अनुभवों को लिखने के लिए विवश होना पड़ा ताकि मेरे अनुभवों से प्रेरित होकर अन्य विद्यालयों की भी श्रेणी में सम्मानित पद्दोन्नति हो सके।
मेरी यह पद्दोन्नति अकेले *दीपनारायण जी* के प्रयास से ही संभव नहीं हुई बल्कि *कड़ा ब्लॉक के BEO श्री अरविन्द पटेल जी एवं समन्वयक श्री आनंद पाठक 'अभिनव'* जी के मार्गदर्शन तथा *प्रधानाध्यापिका श्रीमती मनीषा श्रीवास एवं अन्य स.अ. अरुण कुमार* एवं सभी बच्चों के सक्रिय सहयोग से ही संभव हुई।
मेरी इस कथा को शब्द देने का प्रयास किया *मिशन शिक्षण संवाद उ.प्र.* की टीम ने।
उनको हार्दिक आभार!!!
उनको हार्दिक आभार!!!
अंत में मैं यही कहना चाहूंगा कि न तो मुझे किसी ने गोद लिया और ना ही मैं कोई आदर्श विद्यालय हूँ लेकिन फिर भी अपनी इस छोटी सी उपलब्धि के अवसर में ये कामना कर करता हूँ कि प्रांगड़ में लगे वट वृक्ष महाराज जी के प्रत्येक हफ्ते निकले प्रत्येक नए पत्ते की तरह *दीपनारायण मिश्र जी* एवं हमारा सहयोग करने वाला मेरा परिवार प्रत्येक वर्ष अपने उद्देश्यों को पूरा करें तथा एक दिन इसी विशाल वटवृक्ष की तरह ही उन्नति एवं सफलता को प्राप्त करें। यही हमारी मनोकामना है।
_मेरी इस कथा को आप सभी स्वयं संबधित सभी चित्रों को देखकर आकलन करें एवं सुझाव व् प्रतिक्रिया दें।_
_सादर:--_
_*प्राथमिक विद्यालय घड़ियालीपुर कड़ा जनपद- कौशाम्बी उत्तरप्रदेश*_
यू डायस कोड-09440803201
_सादर:--_
_*प्राथमिक विद्यालय घड़ियालीपुर कड़ा जनपद- कौशाम्बी उत्तरप्रदेश*_
यू डायस कोड-09440803201
मित्रों यदि आपके विद्यालय की भी कोई आत्मकथा हो तो मिशन शिक्षण संवाद के *whatsapp no- 9458278429* पर भेज दें।
*विमल कुमार*
*मिशन शिक्षण संवाद उ०प्र०*
04/09/2017
*विमल कुमार*
*मिशन शिक्षण संवाद उ०प्र०*
04/09/2017
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