140/2025, बाल कहानी- 01 सितम्बर
बाल कहानी- महक की दयालुता
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महक प्राथमिक विद्यालय बौखर में कक्षा तीन की छात्रा है। वह बहुत दयालु प्रवृत्ति एवं विनम्र स्वभाव की है। वह सभी शिक्षकों की प्रिय छात्राओं में से एक है। वह बहुत ही आदर भाव से अपने गुरूजनों की आज्ञा का पालन करती है।
एक दिन जब महक गाँव के रास्ते से स्कूल आती है तो उसने देखा कि एक छप्पर के नीचे खटिया में लेटी तकरीबन सत्तर साल की एक वृद्ध महिला की दर्द के कारण कराहने की आवाज आ रही है। महक ने यह सब देखा तो उससे रहा नहीं गया। पास आकर उसने तुरन्त पूछा, "दादी! आपको क्या परेशानी है?"
दादी बोली, "बेटा! मुझे दस दिन से बुखार आ रहा है।" महक ने कहा, "आपके बच्चे नहीं है क्या?" दादी ने कहा, "बच्चों की शादी हो गई तो सब कमाने बाहर चले गये। यहाँ मैं अकेली रहती हूँ। मेरे पास पैसे भी नहीं है इतने कि इलाज करा सकूँ..कोई मदद को नहीं आ रहा है। क्या करूँ बेटा!"
तभी महक को ख्याल आया कि, हाँ! अगले वर्ष हरितालिका तीज पर लगने वाले गाँव के मेले के लिए उसने गुल्लक में कुछ रूपये जमा किये है।" उसे लगा कि, "ये रूपये दादी को दे देना चाहिए। इन रूपयों की जरूरत दादी को ज्यादा है।" वह घर गयी और गुल्लक तोड़कर सारे पैसे दादी को देकर बोली, "आप अच्छे से अपना इलाज करवा लीजिएगा। दादी की आँखों में आँसू आ गये।भला, इस जमाने में कौन ऐसी मदद करता है? इसके बदले दादी ने महक को ढे़र सारा आशीर्वाद व दुआएँ दीं।
#संस्कार_सन्देश -
मनुष्य का जीवन दयालु प्रवृत्ति का होना चाहिए। दूसरों की मदद एवं नेक कार्य के लिए हमेशा आगे आना चाहिए।
कहानीकार-
#मिथुन_भारती (स०अ०)
प्राथमिक विद्यालय बौखर
वि० क्षे० सरीला, जनपद- हमीरपुर (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात
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