137/2025, बाल कहानी- 28 अगस्त
बाल कहानी - जुड़वाँ बहनों की कहानी
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रिद्धि-सिद्धि जुड़वाँ बहनें दो वर्ष की थीं, तभी से रंगों की पहचान, चन्दा, तारे, सूरज, नदी, पेड़-पौधे पहचानने लगीं। मन्दिर-घंटी, शंख, फूल-फल, आरती, पूजा का अर्थ, मन्त्र कहने व झूला झूलते हुए ढेर सारी बातें करतीं। वह छोटी कविता, गीत पहेली आदि गाती रहतीं। दादा-दादी के साथ उनका मन खूब रमा रहता है।
उनके गाँव आते ही घर की रौनक बढ़ जाती है। नित्य बच्चों की टोली रिद्धि-सिद्धि के साथ होती है।
दिन बीते। अब वे दोनों तीन वर्ष की हो गयीं। वे बाल पाठशाला जाने लगीं। घर पर ही खेल-खेल में माँ के साथ, अपने खिलौने में रोटी-सब्जी बनाने, स्कूल की तैयारी करने, बॉटल रखने, टिफिन खोलने और शीश पेंसिल से लिखना सीख गई हैं।
ऑफिस से आते ही पापा के साथ कपड़ों, खिलौनों की व्यवसाय कला, चार्ट में अंक ज्ञान, समाचार और सामान के मूल्य बताना भी आने लगा है। अब हाथी-घोड़ा बनाना, खेल-कूद, बॉल फेंकना, अटकन-मटकन आदि खेलों में जान गई है। जन्म-दिन, शादी की पार्टी तो उनके खेल का प्रमुख हिस्सा है। स्वच्छता का महत्व बताती हैं।
छुट्टी होते ही दादा-दादी के पास सब गाँव आते हैं। घर की बाड़ी में जाती हैं। फल, सब्जियों की उन्हें पहचान है।
गाय-बछड़ों से बातचीत और उन्हें पुचकारने की कला भी आ गई। पशुओं के प्रति प्रेम-भाव है उनके मन में। चारा और रोटी खिलाती हैं।
सुबह चिड़ियों को दाना-पानी देते गाना गाती हैं, जो दादी ने सीखा दिया है-
आजा चिड़िया रानी, रिद्धि लाई दाना ।
सिद्धि लाई पानी। आजा चिड़िया रानी,
दादी लाईं दाना, जल्दी-जल्दी खा ना। सिद्धि लाई पानी, रिद्धि लाई दाना।
आजा चिड़िया रानी।
दादी से पहेली बुझाना सीख गई है।गिनती लिखना, मात्रा ज्ञान भी आने लगा है।
वीडियो कॉल में टीचर बनकर दादा-दादी को पढ़ाने लगी हैं रिद्धि-सिद्धि। ये तीन वर्ष की बहनें चौथे वर्ष में प्रवेश करने वाली है। दो वर्ष की थीं, तभी से उनका झूला गीत प्रसिद्ध हो गया।
झूले में झूले मेरी ललना, दादी झुला रही पलना।
दादा भी आयेंगे, झूला झूलायेंगे।
पापा झुला रहे झूलना, मम्मी झूला रही झूलना।
बुआ लाई है मेरा पलना, झूले में झूले मेरी ललना।।
यह सब उन्हें हमेशा याद रहता है।
उनके आते ही गाँव में आस-पास के बच्चे इकट्ठे होकर छुट्टियों में झूलते खूब खेलते हैं।
रिद्धि-सिद्धि हर त्योहार बड़ी खुशी से मनाती हैं। कोई भी खाने की चीजें अकेले नहीं खाती हैं।
अपने मन से कहानियाँ बोलने की कला का विकास उनमें नजर आने लगा है। वादन, गायन, नृत्य में भी उनकी रुचि है। इस तरह सारे बच्चों का बचपन सुन्दर प्यारा होता है जो आगे चलकर व्यक्तित्व विकास में सहायक होता है।
#संस्कार_सन्देश -
संस्कार और कौशलों से सम्पन्न सुन्दर बचपन ही व्यक्तित्व विकास में सहायक होता है।
कहानीकार-
#अमितारवि_दुबे (पू० हिन्दी प्राध्यापक)
शासकीय सुखराम नागे महाविद्यालय
जनपद (छिपली) नगरी
जिला- धमतरी (छत्तीसगढ़)
✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात
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