133/2025, बाल कहानी- 23 अगस्त


बाल कहानी- नन्हा केवल
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नवेदिता और उसका पति ओजस अभी नये-नये ही इस शहर में शिफ्ट हुए हैं। उनका एक छोटा-सा सुखी परिवार है। उनका बेटा केवल बहुत-ही प्यारा बच्चा है। उसकी उम्र अभी दो माह ही है। दोनों पति-पत्नी अपनी एकलौती सन्तान से बहुत प्यार करते हैं।
नवेदिता एक सुलझी हुई समझदार गृहिणी है, जबकि ओजस लापरवाह किस्म का इन्सान है। उसको अपना काम औरों पर सौपनें की बुरी आदत है। वह दिन पे दिन और भी ज्यादा आलसी होता जा रहा है। एकल परिवार में रहते हुए नवेदिता को सब-कुछ व्यवस्थित रखना बहुत मुश्किल होता जा रहा है, लेकिन ओजस को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। वह उसकी कोई सहायता नहीं करता। 
धीरे-धीरे समय बीतता गया और आज केवल का प्रथम जन्म-दिन है। घर में खुशी का माहौल है। पूरे घर को दुल्हन की तरह सजाया गया है। मेहमानों की भीड़ लगी हुई है। नवेदिता सब व्यवस्था वगैरह देखने में व्यस्त है, जबकि ओजस को इस से कोई मतलब नहीं है। एक तरफ स्वादिष्ट पकवानों की कतार लगी हुई है, जबकि दूसरी तरफ बच्चों के खिलौने-झूले आदि लगे हुए हैं। सभी लोग खूब आनन्द मना रहें हैं। केवल भी बहुत खुश है।
खान-पान होने के बाद नवेदिता केक का टेबल लगवाने के लिए ओजस से बोलती है, लेकिन वह अपनी आदत से मजबूर उसकी कोई बात नहीं सुनता। नवेदिता केवल को ओजस को थमाकर केक का टेबल लगवाने के लिए चली जाती है। वह वहाँ व्यवस्था देखने में व्यस्त हो जाती है और इधर लापरवाह ओजस केवल को एक कुर्सी पर बैठाकर निकल जाता है, जैसे उसको उसकी कोई परवाह ही नहीं है।
एक भव्य और बहुत ही सुन्दर-सा केक मेज पर सजा हुआ है। सब लोग टेबल के चारों तरफ एकत्रित हो जाते है। नवेदिता ओजस को पुकारती है कि वह केवल को लेकर आये, लेकिन केवल का कहीं अता-पता नहीं था। ओजस सारी गलती नवेदिता पर डालकर बोलता है - "तुमसे एक बच्चा तक नहीं सँभाला जाता है। करती क्या हो तुम पूरा दिन?" नवेदिता रोते-रोते अपने बेटे को इधर-उधर ढूँढने लगती है। सब मेहमान भी केवल की खोज मे जुट जाते हैं, लेकिन केवल कहीं नहीं मिलता।
हार-थककर सब लोग बैठ जाते है। तभी सोसाइटी का गार्ड वहाँ आता है, केवल उसके साथ था। केवल को देखकर सबकी जान में जान आ जाती है। नवेदिता नन्हे केवल को अपने सीने से लगातार खूब रोती है।
तभी गार्ड बताता है कि, "नन्हा-सा केवल चलते-चलते बाहर सड़क तक निकल गया था।" जैसे ही गार्ड की निगाह उस पर पड़ती है, वह उसे अपने साथ लेकर चला आता है। सभी लोग मिलकर हँसी-खुशी केक काटते है। सभी बच्चों को रिटर्न-गिफ्ट देकर विदा किया जाता है। सबके चेहरे उपहार पाकर खिल उठते है। इस प्रकार सब हँसते हुए अपने-अपने घरों के लिए निकल पड़ते हैं।

#संस्कार_सन्देश- 
हमें आलस नहीं करना चाहिए और अपना कार्य पूरी लगन के साथ करना चाहिए।

कहानीकार-
#ब्रजेश_सिंह (स०अ०)
प्रा० वि० बीठना
लोधा, अलीगढ़ (उ०प्र०)

✏️संकलन 
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद 
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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