130/2025, बाल कहानी- 20 अगस्त
बाल कहानी - राखी का मोल
-------------------------
"अरे! इसके लिए बीस रूपये ही काफी हैं, एक-दो रूपये की डोर तो लायी है बाँधने के लिए, छोटी लड़की तो है ले, दे-दे इसे।" उपेक्षित सी नजरों से कमली की ओर देखते हुए राकेश के पापा ने बीस रूपये का पुराना-सा नोट बेटे राकेश की ओर बढ़ाते हुए कहा।
नन्हा-सा कोमल मन पापा की तीर-सी बातों को सुन अन्दर तक घायल हो गया। गाँव में राकेश के पिता सम्भ्रान्त व्यक्तियों में गिने जाते थे। जहाँ रक्षा-बन्धन के दिन आस-पड़ोस से पण्डित जन आकर पूरे परिवार को रक्षा-सूत्र बाँधते और मोटी-मोटी दक्षिणा पाकर निहाल होते रहते।
कमली नेपाली मजदूर कर्मा की पुत्री, जो तीसरी कक्षा में निकट के सरकारी स्कूल में पढ़ती थी और सायंकाल राकेश के साथ खेलती रहती, राकेश को बहुत भाती थी।
इकलौती आठ वर्षीय सन्तान राकेश के लिए वह एकमात्र खेल की साथी थी। राकेश उसके साथ कभी क्रिकेट खेलता तो कभी कमली उसे नेपाली खेल में उलझाए रखती। दोनों का अच्छा मनोरंजन हो जाता। राकेश की माँ ने एक बार कहा था, "कमली तेरी बहिन-सी हुई बेटा!" तब से वह उसे मन ही मन सगी बहिन की तरह मानता तथा शाम को घर से खाने की अच्छी-अच्छी चीजें लेकर जाता । जिसे वह खेलने के दौरान मिल बाँटकर खाते और खुश होकर चहकते-कूदते-फाँदते।
राकेश की माँ कमली को राकेश के पुराने कपड़े देती रहती, जिन्हें पहनकर वह अत्यन्त इठलाती और उनका जतन कर रखती।
आज पापा द्वारा दिया गया बीस रूपये का पुराना नोट उसे कमली को देने के लिए भीतर से अनुमति नहीं दे रहा था। तभी पण्डित कृष्णानन्द जी घर पर आ गये। पापा उनसे रक्षा-सूत्र बँधवाते हुए बतियाने लगे। राकेश चुपचाप भीतर गया और बीस का नोट अपने पर्स में रख वहाँ से सौ रूपये का करारा नोट, जिसे कल उसकी बुआ ने जाते हुए उसके हाथ में रखा था, छिपते-छुपाते लाकर कमली को सौंप दिया। कमली उछलती हुई चली गयी।
नन्हा-मन भीतर से अत्यन्त प्रसन्न हुआ और सोच रहा था, "बच्चों की राखी का मोल सयाने क्या जानें?"
#संस्कार_सन्देश -
हमें राखी का मोल और पुराने संस्कारों का मूल्य समझते रहना चाहिए।
कहानीकार-
#दीवान_सिंह_कठायत (प्र०अ०)
रा० आ० प्रा० वि० उडियारी, बेरीनाग (पिथौरागढ)
✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात
Comments
Post a Comment