132/2025, बाल कहानी- 22 अगस्त
बाल कहानी- सरला जी
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ओजमयी, गोरे बदन, बोलती बड़ी-बड़ी आँखें तथा गुलाबी रंगत लिए आकर्षक मुखड़े की स्वामिनी सरला जी को जो भी पहली नजर में देख लेता, उनसे अत्यन्त प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता। बालीवुड की किसी सुघड़ रूपवती हीरोइन से वह कदापि कम नहीं , बल्कि इक्कीस ही लगतीं।
लोग उनके बारे में जानने की इच्छा रखते तथा परिचितों से उनके परिचय की खबरें मन लगाकर सुनते। गाँव से पहाड़ी नगर में आये अभी साल-भर भी नहीं हुआ था उनको, जब वह विवाह के पश्चात् इस नगर की नागरिक बनीं थीं। लोग उनके पति के इस अद्भुत सौभाग्य की मन ही मन खूब सराहना करते।
बचपन से ही सुन्दरता की पर्याय सरला जी, विवाह से पूर्व गाँव में सरूली दी नाम से अपने वयवर्ग या उम्र में छोटे लोगों में जानी जाती लेकिन विवाह के बाद नगर में रहते हुए यह नाम उन्हें जँचा नहीं और उन्होंने सरूली को सरला में बदल कर अपने नगरीय अन्दाज का आत्मबल स्वयं प्राप्त करने का भरपूर प्रयास किया, जिसमें वह सफल हुईं और सोसल मीडिया के इस युग में सफल रीलर बनकर सबके बीच अब सरला जी नाम से जानी जाने लगीं। वह अति शीघ्र लाखों फोलोवर्स की चितेरी बन मीडिया संसार में प्रसिद्ध हो गयीं।
गाँव में रहते हुए उन्होंने पशुपालन कर दुग्ध-उत्पादन के अनेक गुर सीख लिए थे, जिसे उन्होंने नगर में भी बदस्तूर जारी रखने का निर्णय किया। रील निर्माण के साथ-साथ डेयरी का काम भी उन्होंने शुरू कर दिया, जिसमें उनके पति का उन्हें भरपूर साथ मिला। धीरे-धीरे वह एक सफल दुग्ध उत्पादक के रूप में भी जानी पहचानी जाने लगीं। सम्बन्धित विभाग के अधिकारी व कर्मचारीगण उन्हें सहयोग करने के मौके तलाशते तथा प्रेरणा व उत्पादन के उनको पुरस्कार प्रदान कर स्वयं को धन्य समझने लगते।
अब सरला जी केवल तन के आकर्षण से ही नहीं बल्कि अपनी अथाह मेहनत व कर्तव्य-परायणता की भी मिशाल बनकर लोगों के दिलों में राज करने लगीं थीं।
#संस्कार-सन्देश-
हमें तन के आकर्षण से नहीं बल्कि अपनी मेहनत और कर्तव्य-परायणता से लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना चाहिए।
कहानीकार-
#दीवान_सिंह_कठायत (प्र०अ०)
रा० आ० प्रा० वि- उडियारी बेरीनाग
पिथौरागढ़ (उत्तराखण्ड)
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