109/2024, बाल कहानी-04 जुलाई


बाल कहानी- माँ की सीख
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बहुत दिनों की बात है। एक जंगल में बीना नाम की मुर्गी रहती थी। उसके प्यारे-प्यारे चार बच्चे थे। टीनू-मीनू-रीनू और नीलू माँ बीना पानी पीने से लेकर दाना चुगने तक सदैव उन्हें अपने साथ रखती थी। इस समय अवधि में वह चारों को अपनी सुरक्षा व सावधानी से भी अवगत कराती रहती थी। चारों में नीलू बहुत शैतान था। उसे माँ के बताये रास्ते पर चलने में बहुत कष्ट होता था। धीरे-धीरे उसे मनमर्जी की आदत हो गयी। 
इस जंगल में एक लीलू नाम का दुष्ट भेड़िया रहता था। मासूम जानवरों को परेशान करना व चट्ट कर जाना उसकी आदत थी माँ बीना अपने बच्चों को वीरान रास्ते से जाने के लिए हमेशा मना करती थी। उधर खाने की सामग्री का आकर्षण नीलू को हमेशा उस रास्ते पर खींचता था, लेकिन माँ के डर की वजह से वह उस रास्ते पर जा नहीं पाता था। 
एक दिन बीना ने अपने बच्चों से कहा-, "अब तुम्हें रास्ते की समझ हो गयी है व अपने बचाव के नियम भी ज्ञात हो गये हैं। आज तुम सब अकेले ही जाओगे। तुम चारों में टीनू सबसे बड़ा है, इसलिए मेरे बाद तुम सबको उसी की बात माननी है। इसके पश्चात भी यदि मुसीबत में फँस जाओ तो घबराना नहीं। दिमाग को ठण्डा रखना व उसके पश्चात तुम्हें कोई न कोई युक्ति समझ में आ ही जायेगी। तुम समस्या का हल ढूँढ ही लोगे।" चारों हँसते-खेलते उछलते कूदते बाहर निकले। नीलू कई दिनों से वीरान रास्ते की मटर की सोंधी खुशबू में लीन रहता था, पर माँ के डर के मारे उधर जा नहीं पाता था। आज उसे मौका मिल गया। वह जैसे ही उस वीरान रास्ते पर मुडा, टीनू ने उसे तुरन्त टोका, पर नीलू कहाँ मानने वाला था? वह जाते-जाते चिल्ला कर बोला-, "मैं तुम सबसे पहले माँ के पास घर पहुँच जाऊँगा।" मटर की सोंधी खुशबू जैसे ही उसकी नाक में पहुँची, वह गाने लगा-, "यम-यम चटर-पटर खा ले मुर्गे हरी मटर।" इधर दुष्ट भेड़िया घात लगाये बैठा था। वह नीलू पर झपटा। वह असावधान नीलू को अपने पन्जे में जकड़ 'अब तो तुम मरने जा रहे होलिया' अब नीलू को माँ की बतायीं। सारी बातें याद आने लगीं। उसने बिना घबराहट के कहा-, "लीलू मामा राम राम!" लीलू ने आश्चर्य से कहा-, "अब तो तुम मरने जा रहे हो, तो राम-राम कैसी?" 
"अरे मामा! मरने तो मैं जा रहा हूँ, पर चाहता हूँ कि तुम्हारे लिए अधिक स्वादिष्ट बन जाऊँ।" मूर्ख भेड़िए ने कहा-, "वह कैसे?" नीलू ने कहा-, "मेरा स्वादिष्ट सूप बनाकर भेड़िया नीलू के झांसे में आ गया।" सबसे पहले नीलू ने मटर तुडवायी, फिर चीजों की सूची बनवायी। भेड़िया खुशी-खुशी सारी चीजों की व्यवस्था करता गया। नीलू ने कहा-, "बस! अब हमें हरे प्याज की जरूरत है, जो जंगल की पहाड़ी के उस पार बस्ती में बोया गया है।" मूर्ख भेड़िया पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश में फिसल कर नीचे आ गया। नीलू ने तुरन्त मौका लपक लिया। उसने कहा-, "मामा! मैं हल्का-फुल्का हूँ। जल्दी से चढ़कर हरे प्याज लेकर लौटता हूँ। अगर तुम्हें लगता है कि मैं भाग जाऊँगा तो मेरे पैर में एक रस्सी बाँध दो और बीच-बीच में हिलाकर देखते रहना कि मैं हूँ।" भेड़िए ने कहा-, "ठीक है।" बस! फिर क्या था? नीलू रस्सी बाँधकर पहाड़ पर चढ़ गया। उसने धीरे से उतरकर रस्सी एक पत्थर में बाँध दी और स्वयं भाग खड़ा हुआ। इधर भेड़िया रस्सी हिलाता रह गया और बहुत देर बाद उसे अपनी मूर्खता का एहसास हुआ। इधर नीलू जब घर पहुँचा तो माँ और सारे भाई नीलू के लिए रो रहे थे। नीलू माँ से लिपट गया और माफी माँगने लगा। इसके बाद नीलू माँ का सबसे आज्ञाकारी बच्चा बन गया।
 
संस्कार सन्देश-
बड़ों की बात अवश्य माननी चाहिए क्योंकि वह अधिक अनुभवी होते हैं।

लेखिका-
डॉ० सीमा द्विवेदी
कंपोजिट स्कूल कमरौली  
जगदीशपुर (अमेठी)

कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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