108/2024, बाल कहानी- 03 जुलाई


बाल कहानी- सहभागिता और संगठन
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एक गाँव में रोहित और अजय दो दोस्त रहते थे। दोनों ही पढ़ाई में बहुत होशियार थे। वह दोनों नियमित विद्यालय जाते थे। स्कूल गाँव से दूर होने के कारण पैदल ही सफर करना पड़ता था। गर्मी के मौसम में गाँव से स्कूल तक बहुत धूप लगती थी। 
एक दिन विद्यालय में बाहर के कुछ लोग आये। वह स्कूल में वृक्षारोपण के लिए लोगों को जागरूक कर रहे थे। 
विद्यालय के बच्चों के सामने वह पेड़ों की विशेषता बता रहे थे, साथ ही पेड़ कैसे लगाए जाएँ, कैसे उनमें खाद पानी दिया जाए? पूरी जानकारी विस्तार से दे रहे थे ।
 इस पूरे प्रोग्राम को रोहित और अजय दोनों ध्यान से देख रहे थे। 
उसके बाद विद्यालय की छुट्टी हुई तो रोहित और अजय दोनों घर के रास्ते में चलते-चलते पेड़ लगाने की तरकीब खोज रहे थे। 
घर की दूरी विद्यालय से लगभग एक किलोमीटर ही होगी। दोनों ने विचार किया कि अब हम घर से विद्यालय के रास्ते में ही पेड़ लगायेंगे। उन्होंने अपने बाकी साथियों को इकट्ठा किया और उन्हें बताया कि-, "हम सब दो-दो पेड़ स्कूल से घर के रास्ते में लगायेंगे और उन्हीं पेड़ों की हम देख-रेख करेंगे।" 
सभी दोस्तों ने पेड़ लगाना शुरू किया। पहले साल उन्होंने सोलह पेड़ लगाये और दूसरी साल इससे भी अधिक पेड़ लगाये और खुद ही उनकी सुरक्षा करते। पाँच साल में कुछ पेड़ बड़े होकर छाया और फल देने लगे। 
उन बच्चों को देखकर गाँव के लोग भी सहयोग के लिए उनके साथ रुचि लेने लगे। इसका परिणाम यह हुआ कि वर्तमान में इस गाँव में पाँच सैकड़ा से अधिक पेड़ लहलहा रहे है और इसका श्रेय रोहित और अजय को जाता है। 

संस्कार सन्देश-
पर्यावरण संरक्षण हमारा कर्तव्य के साथ-साथ हमारी आवश्यकता भी है। हम सभी को पर्यावरण संरक्षण में योगदान देना चाहिए।
 
लेखक-
धर्मेंद्र शर्मा (स०अ०)
कन्या० प्रा० वि० टोडी-फतेहपुर
गुरसरांय, झाँसी (उ०प्र०)

कहानी वाचक-
नीलम भदौरिया
जनपद- फतेहपुर (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝 टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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