18/2024, बाल कहानी- 08 फरवरी


बाल कहानी- बेटी एक चमत्कार

किसी गाँव में एक परिवार रहता था। उस परिवार में नीलेश अपनी पत्नी रुपा, छोटा बेटा अभिनीत, बहू दीपिका, नातिन भूमि के साथ रहता था। नीलेश का बड़ा बेटा आशीष गुड़गाँव में एक बिदेशी कम्पनी में प्रभारी के रुप में कार्यरत था।
नातिन भूमि के जन्मदिन पर नीलेश को बड़ी खुशी हुई थी। नीलेश चाहता भी था कि उसके घर में लक्ष्मी आये। घर के अन्य सदस्य बेटा चाहते थे। बहू दीपिका घर का कोई काम नहीं करती थी। वह हर समय पति के साथ रहने की जिद करती थी। वह कभी भी ससुराल में कोई काम नहीं करती थी। दिनभर मोबाइल पर व्यस्त रहती थी। दिन-भर गाने सुनना और फोन पर बातें करना यही उसकी दिनचर्या थी। वह सभी से लड़ती थी।
वैसे तो घर में उसका स्वभाव देखकर कोई नहीं चाहता था कि इसे कोई सन्तान हो। सभी उससे छुटकारा पाना चाहते थे। छोटा बेटा अभिनीत बी०एड० कर रहा था और घर पर बच्चों को पढाया करता था। इससे वह तेरह-चौदह हजार रुपए मासिक कमा लिया करता था। इसके साथ ही वह खेती का काम भी देखता था। अभिनीत के माता-पिता चाहते थे कि वह बाहर रहे और आगे अपना कैरियर बनाये। किन्तु अभिनीत माँ-बाप को गृह-कलह में फँसा छोड़कर नहीं जाना चाहता था।
ऐसे हालातों में एक बेटी का जन्म होने से सभी को चिन्ता होने लगी कि बहू कैसे उसे अच्छे संस्कार देकर पोषित करेगी और पढ़ायेगी? सबकी चिन्ता स्वाभाविक थी। दीपिका अपने पति से भी शादी के बाद से ही झगड़ने लगी थी। इसीलिए कोई भी उसे पति के साथ भेजने को तैयार नहीं होता था। नीलेश का बड़ा बेटा भी उससे बहुत परेशान था। वह भी उसे साथ नहीं ले जाना चाहता था।
धीरे-धीरे महीना गुजरा। बेटी के आने से चमत्कार हुआ। सभी उसे हाथों पर लिए रहते। भूमि ने सबका मन मोह लिया था।
धीरे-धीरे वह बड़ी हुई। तीन वर्ष की होने को थी। भूमि के आने से सभी को पता नहीं चला कि तीन वर्ष कैसे गुजर गये। दीपिका का व्यवहार ज्यों का त्यों था। किन्तु भूमि के साथ रहते हुए सब उसके व्यवहार से अछूते रहते थे। भूमि के पास होने से सब लोग लड़ाई-झगड़ा भूल जाते थे। भूमि भी अब अपने पापा को चाहने लगी थी। वह रोज तीनों समय पापा से बात करती और सुबह-शाम वीडियो काॅल करवाती। इस प्रकार उसकी तोतली बोली, खेल से सभी को मानो नया जीवन मिल गया था।
भूमि के पापा जब भी माह में दो-चार दिन के लिए घर आते तो भूमि हमेशा उनके साथ रहती।
अब भूमि भी समझने लगी थी कि ये हमारे पापा हैं। वह हर समय पापा से साथ ले जाने और बुलाने की जिद करती। उसके पापा उससे कहते कि-, "तुम अपनी माँ को कहो कि अगर साथ रहना है तो पहले अपना व्यवहार सुधारे। सबसे अच्छी तरह बोले। घर के काम में दादी की मदद करे। अगर वह तीन माह अच्छी तरह से व्यवहार करेगी तो वह उसे माँ सहित लिवा ले जायेगा।" भूमि जानती थी कि उसकी माँ सबसे लड़ती है। वह माँ को डाँटती भी थी, लेकिन वह नहीं मानती थी। अब जब भूमि ने कहा तो उसने अपना व्यवहार बदलना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे वह घर का काम करने लगी और सभी से प्रेमपूर्वक वर्ताव करने लगी। बहू के पिता ने भी उसे समझाया। पहले यही पिता उसे उल्टी शिक्षा देते थे, जिसके कारण दीपिका सभी से गलत व्यवहार करती थी। उसके इस व्यवहार से सभी खुश रहने लगे। घर की खुशियाँ फिर से वापस लौट आयीं। समय आने पर आशीष दीपिका को भूमि के जन्म-दिन के बाद अपने साथ शहर ले गया और वे वहाँ हिल-मिलकर प्रेमपूर्वक रहने लगे।
नीलेश का छोटा बेटा अभिनीत भी बाहर जाकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गया।

संस्कार सन्देश-
बेटी सचमुच चमत्कार से कम नहीं होती हैं। अतः हमें सदैव इनका मान-सम्मान करना चाहिए।

✍️🧑‍🏫लेखक-
जुगल किशोर त्रिपाठी
प्रा० वि० बम्हौरी (कम्पोजिट)
मऊरानीपुर (झाँसी)

✏️ संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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