35/2024, बाल कहानी- 01 मार्च


बाल कहानी- भरत का विलाप
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भरत और शत्रुघ्न दोनों अपने ननिहाल गए हुए थे। अचानक अयोध्या के दूत वहाँ पहुँच गये  और भरत को सन्देश दिया कि-, "गुरु वशिष्ठ ने शीघ्र ही आपको अयोध्या बुलाया है।" भरत ने दूत से पूछा कि-, "उनके माता-पिता एवं भाई, अयोध्यावासी सब सकुशल तो हैं न?" परन्तु गुरु के आदेश को मानते हुए दूत ने सत्य छिपा लिया और कहा कि-, "सब कुछ सकुशल है। उन्होंने शत्रुघ्न सहित तत्काल अपने  मामा से विदा होने की आज्ञा लेकर अयोध्या की ओर प्रस्थान किया। सात दिन की यात्रा के पश्चात भरत अयोध्या में प्रवेश कर गये। 
 कैकेयी भरत के आने का समाचार पाकर पुत्र का स्वागत करने के लिए आयी। उसने प्रसन्नता से भरत का मस्तिष्क चूमकर उसे आशीष दिया। 
भरत ने अपनी माँ से पूछा-, "माँ! पिताजी, राम-लक्ष्मण एवं माताएँ आदि सब कहाँ हैं, क्या उन्हें मालूम नहीं चला की भरत आ गया है?"
कैकेयी ने संयत स्वर में भरत को महाराज दशरथ की मृत्यु का समाचार सुनाया। 
इस दु:खद समाचार को सुनते ही भरत अपने आप को संभाल नहीं पाये और मूर्छित होकर गिर पड़े। 
कैकेयी ने किसी प्रकार भरत को संभाला। कैकेयी ने सब बात भरत को बतायी कि, "महाराज ने मुझे दो वर माँगने का वचन दिया था। महाराज राम का राज अभिषेक करने जा रहे थे, इसीलिए मैंने महाराज से अपने दोनों वर माँगे। महाराज से पहले वचन में तुम्हारे लिए अवध का राज्य माँगा । दूसरे वचन में राम के लिए चौदह वर्ष का वनवास माँगा। महाराज पहले वचन के लिए मान गए, परन्तु पुत्र- प्रेम के कारण दूसरा वचन सुनते ही उनकी चेतना खो गयी। जब यह बात राम को पता चली तो उसने पिता के वचन को सत्य करने के लिए लक्ष्मण और सीता सहित वन गमन किया। महाराज यह सहन नहीं कर सके और स्वर्ग सिधार गये।" 
भरत यह सब सुनकर अत्यन्त विलाप करने लगे। 
तभी कौशल्या और सुमित्रा भी भरत के अयोध्या आने की सूचना सुनकर वहाँ आती हैं। वे भरत को गले लगाकर विलाप करने लगीं। माता की ऐसी दशा देखकर भरत स्वयं को धिक्कारने  लगा। 
भरत माता कैकेयी के प्रति घृणा से उन पर क्रोधित हो उठते हैं। भरत को माताएँ समझती हैं। भरत अपने पिता राजा दशरथ का अन्तिम संस्कार करने के लिए चल देते हैं और पिता का मृत शरीर देखकर भरत विलाप करने लगते हैं।
गुरु वशिष्ठ उन्हें समझाते हैं कि-, "जन्म और मृत्यु जीवन के अंग है। इस संसार में जन्म- मरण और नाश निर्माण साथ-साथ चलते हैं। हे! भरत तुम जैसा महान व्यक्ति को इस प्रकार विलाप करना उचित नहीं है।
अपने पिता का अन्तिम संस्कार करो और अपने पुत्र होने का कर्तव्य निभाओ।"
भरत अपने पिता के मृत्यु शरीर का अन्तिम संस्कार करते हैं।‌

संस्कार सन्देश-
हमें स्वार्थवश किसी का अधिकार नहीं छीनना चाहिए, अन्यथा महान अनर्थ होता है।

✍️🧑‍🏫लेखक-
प्रशांत शर्मा (बी०ए०)
भगवती प्रसाद दौलतराम महा वि० सिराथू, कौशाम्बी, प्रयागराज (उ०प्र०)

✏️ संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

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