28/2024, बाल कहानी- 21 फरवरी


बाल कहानी- ललक
----------------

किसी गाँव में मोहन अपनी पत्नी राधा और दो बच्चों करन और मोहनी के साथ रहता था। करन कक्षा तीन में पढ़ता था, जबकि मोहनी अभी छ: वर्ष की नहीं हुई थी। मोहनी के मन में पढ़ने की बहुत ललक थी। वह कभी-कभी अपने भाई करन के साथ स्कूल जाती। वह प्रार्थना स्थल पर प्रार्थना और पी०टी० करती। कक्षा में वह मन लगाकर पढ़ती। कुछ ही दिनों में वह बहुत होशियार हो गयी थी। मोहनी रोज अपनी माँ से कहती कि-, "माँ! आप मुझे रोज भाई के साथ स्कूल क्यों नहीं जाने देती? मैं बहुत मन लगाकर पढ़ती हूँ और सभी अध्यापक मेरी बहुत प्रसंशा करते हैं। वे कहते हैं कि तुम रोज स्कूल आया करो। अब तुम छ: वर्ष की होने वाली हो। अगले सत्र से स्कूल में तुम्हारा नाम लिख जायेगा। माँ! मुझे रोज स्कूल जाने दिया करो।"
मोहनी की बातें सुनकर राधा कहती कि-, "तुम्हें रोज स्कूल जाकर क्या करना है? मैं घर पर अकेली रहती हूँ। मेरे पास रहकर घर का काम सीखा करो। बेटियों को घर का सभी काम सीखना चाहिए।"
मोहनी ने तुरन्त जबाब दिया-, "माँ! आप चिन्ता मत करो! मैं पढ़ाई भी करुँगी और एक अच्छी बेटी की तरह घर का सारा काम भी सीखूँगी और करुँगी भी।"
माँ उसकी प्यार भरी बातें सुनकर मना नहीं कर सकी और बोली-, "ठीक है। मैं तुम्हें कल से रोज स्कूल भेजूँगी, पर ध्यान रखना, घर का काम भी...।" सुनते ही मोहनी प्रेम से माँ के गले लिपटकर बोली-, "मेरी प्यारी माँ! मैं आपको कभी भी शिकायत का मौका नहीं दूँगी।" यह सुनते ही माँ खुश हो गयी। मोहन जो छिपकर माँ-बेटी की प्यार-भरी बातें सुन रहा था, तुरन्त सामने आ गया और बोला-, "माँ-बेटी में आज क्या बातें हो रही थी?" पापा को देखते ही मोहनी माँ को छोड़कर पापा के पास जाकर बोली-, "पापा..पापा! मैं कल से रोज स्कूल जाऊँगी।" पापा ने उसे गोद में उठाकर प्रेम से कहा कि-, "हाँ, मेरी बच्ची! आप जरुर रोज स्कूल जाओगी। अब तुम छ: वर्ष की होने वाली हो। मैं इस वर्ष तुम्हारा नाम स्कूल में लिखवा दूँगा। मेरी बच्ची तो बहुत होशियार है।" मोहनी खुशी से 'हूँ.ऊँ.ऊँ' कहते पापा से लिपट गयी और बोली-, "माँ! देखो, मेरे पापा कितने अच्छे हैं। मैं पढूँगी भी और घर का काम भी सीखूँगी। " पापा ने कहा-, "अभी तुम्हारी उम्र पढ़ने की है, न कि घर का काम करने की। थोड़ा और बड़ी होना, फिर घर का काम सीखना।" पापा की बात सुनकर मोहनी बोली-, "नहीं पापा! माँ घर का काम करके थक जाती है। मैं माँ के साथ घर के काम में हाथ बटाऊँगी तो माँ खुश रहेगी और बीमार भी नहीं पड़ेगी।"
यह सुनकर मोहन बोला-, "तू तो बहुत बड़ी-बड़ी बातें करती हैं। मेरी बेटी तो बहुत बड़ी हो गयी है। ठीक है, जो तुझे अच्छा लगे, करना, लेकिन पढ़ना अभी जरुरी है।" 'ठीक है पापा' कहती हुई मोहनी बाहर खेलने चली गयी। मोहनी के जाने के बाद मोहन राधा से बोला-, "हमारे बच्चे अभी से कितने समझदार हैं। मोहनी के मन में पढ़ने की हार्दिक इच्छा है। हमें उसे दबाना नहीं चाहिए। कई लोग अपनी बच्चियों को स्कूल नहीं भेजते और न ही उनकी पढ़ाई और संस्कारों पर ध्यान देते हैं, ऐसे में बच्चे पढ़ाई से दूर हो अज्ञानता का जीवन व्यतीत करते हैं और आगे चलकर यही जीवन उनके साथ खिलवाड़ करता है। यही बच्चे आगे चलकर अपने माँ-बाप को दोषी ठहराते हैं।"
"ठीक कहते हो तुम! मैं तो सोचती थी कि बेटी को पढ़ाकर क्या करना है? एक दिन घर का काम ही तो करना ही पड़ेगा। परन्तु अब हमारी समझ में आया कि पढ़ना श्रेष्ठ जीवन जीने का सुन्दर तरीका है। हमें इसे उनसे नहीं छीनना चाहिए। पता नहीं, कब, कौन बच्चा पढ़-लिखकर क्या बन जाये?" राधा की बात सुनकर मोहन बोला-, "राधे! तुम बिल्कुल सही कहती हो। हमें न केवल अपने बच्चों को पढ़ाना चाहिए, बल्कि उन लोगों को भी समझाना चाहिए जो अपने बच्चों को पढ़ाने में संकोच और लापरवाही करते हैं। एक समझदार व्यक्ति का यही कर्तव्य है।" 

संस्कार सन्देश-
जो माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ाते नहीं हैं, वे उनके शत्रु होते हैं।

✍️🧑‍🏫लेखक-
जुगल किशोर त्रिपाठी
प्रा० वि० बम्हौरी (कम्पोजिट)
मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम मिशन शिक्षण संवाद
नैतिक प्रभात

Comments

Total Pageviews