बन्धन

पहला, दूजा, तीजा, चौथा, सातवाँ बंधन टूट गया।

उस तिरंगा की खातिर तेरा, मुझसे नाता छूट गया।।


उस यज्ञवेदी  के सामने तुमने, जो वायदे कसमें खाईं थीं।

एक ने भी ना साथ निभाया, सारी की सारी झूठी थीं।।

जिस सुख की चाहत थी दामन को, उससे नाता रूठ गया।।


वो मखमली आवाज तुम्हारी, अंतर्मन छू जाती थी। 

मेरे मुरझाए से मन में , जीने की आस जगाती थी।।

जीवन के सतरंगी  धनुष से, रंगों का साथ भी छूट गया।।


रात के दामन में सोकर, प्रातः  नवजोश लाऊँ  कैसे।

अपने सपनों के पंखों को, तुम बिन अब फैलाऊँ कैसे।।

वसन्त निशा की जुन्हाई में, जीवन का ताला टूट गया।।


गुलाबी थी हम दोनों की, मोहब्बत की अनुपम कहानी।

धैर्य समन्दर  का  टूट रहा, हो रही दरिया सी  रवानी।।

  नेह बरसाया   बादल सा पर, सावन में  वो सूख गया।।


रचयिता

अजय विक्रम सिंह, 
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मरहैया,
विकास क्षेत्र-जैथरा,
जनपद-एटा।

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