तुम ही शिव-शंभू

 तर्ज- तुम ही मेरे मंदिर......


तुम ही शिव-शंभू, तुम ही हो कृपाला। 

गले मुण्डों की माला, त्रिशूल विशाला।।


देवों पर जब भी मुसीबत है आई,

प्रभु आपने ही दूर भगाई,

हाथों में डमरु, पहने मृगछाला।

गले मुण्डों की माला, त्रिशूल विशाला।।

तुम ही शिव-शंभू..........


देव और दानव में युद्ध हुआ था, 

दोनों ने तब समुद्र मंथन किया था, 

कहलाए नीलकण्ठ, पिया विष का प्याला। 

गले मुण्डों की माला, त्रिशूल विशाला।।

तुम ही शिव-शंभू..........


नंदी की सवारी, भस्मी, सर्प माला, 

गौरा इनकी पत्नी, गणपति लाला, 

सर पर सोहे चन्दा निराला। 

गले मुण्डों की माला, त्रिशूल विशाला।।

तुम ही शिव-शंभू..........


भक्तों की भक्ति में रमते त्रिपुरारी, 

इच्छा पूरी कर दे भक्तों की सारी, 

कुछ भी ना माँगे, मेरा भोला भाला। 

गले मुण्डों की माला, त्रिशूल विशाला।।


तुम ही शिव-शंभू, तुम ही हो कृपाला। 

गले मुण्डों की माला, त्रिशूल विशाला।।


रचयिता

हेमलता गुप्ता,

सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मुकंदपुर,
विकास खण्ड-लोधा, 
जनपद-अलीगढ़।



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