श्री मैथिली शरण गुप्त

3 अगस्त 1886 को

लिया जन्म आपने, 

हुआ धन्य चिरगाँव, झांसी (उ.प्र.) 

पाकर ऐसा सपूत अपने आँगन में। 


द्विवेदी काल के

कवि हैं आप, 

खड़ी बोली के

प्रथम कवि हैं आप। 


थे अदभुत शिल्पकार

मानवीय मनोभावों के, 

हमारी चेतना, हमारे आंदोलनों की भाषा बन गये

समाज को नयी दिशा दी आपने। 


प्रथम काव्य- संग्रह रंग में भंग

और फिर अनगिनत काव्य रचनाएँ

जयद्रथ वध, साकेत, पंचवटी, यशोधरा

बनीं मानव-मन की प्रेरणाएँ। 


1964 में चल बसे

देकर साहित्य का असीम भंडार, 

बने राष्ट्र-कवि, पाया ज्ञान पीठ पुरस्कार

था ऐसा अदभुत जीवन-संसार

 

श्री मैथिली शरण गुप्त जी

करते हैं नमन आपको बार- बार

आ जाएँ आपकी शरण में

तो रच पायें कुछ ऐसा ही संसार।। 

       

रचयिता
अर्चना गुप्ता,
प्रभारी अध्यापिका, 
पूर्व माध्यमिक विद्यालय सिजौरा,
विकास खण्ड-बंगरा,
जिला-झाँसी।

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