विश्व हास्य दिवस
चलो हँसते और हँसाते हैं,
दर्द-ओ-ग़म को दूर भगाते हैं।
माना वक्त बहुत है मुश्किल,
एक-दूजे को ढांढस बँधाते हैं।
खुद को जानें पहचानें हम ऐसे,
अट्टहास नादानियों पर लगाते हैं।
सकारात्मक सोच को ही अब पनाह दे,
नाकारात्मकता को फ़िजा से हटाते हैं।
कुछ गा लें, गुनगुना लें यूँ ही,
कभी जोर-जोर से चिल्लाते हैं।
प्रकृति ने जो कहर है ढहाया हम पर,
कुछ पल को उससे निजात दिलाते हैं।
हँसने से बढ़ती है उम्र यारों,
मौत को अपने दर से भगाते हैं।
इष्ट, दोस्त, मित्रों, संग बात करें,
बच्चा बन अपना बचपना लाते हैं।
हँसना मुस्कुराना है अचूक औषधि,
बिना मूल्य लिए सब पर लुटाते हैं।
कोई मन बोझिल दुःखी ना रहे,
आओ हँसी खुशी की राग सुनाते हैं।
रचयिता
वन्दना यादव "गज़ल"
सहायक अध्यापक,
अभिनव प्रा० वि० चन्दवक,
विकास खण्ड-डोभी,
जनपद-जौनपुर।
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