माँ की ममता के लिए
टूटती-बिखरती हुई हिम्मत में थोड़ी सी आस आ गई,
दुखों को सहलाने के लिए जब माँ पास आ गई।
न जानते थे जिंदगी का मतलब संघर्ष होता है,
जीवन जीने की कला माँ बखूबी समझा गई।
जीवन की राह कठिन थी जहाँ धूप ही धूप थी,
ममता की छाँव बन के माँ हम पर छा गईं।
माँ है वो जड़ें जिसके सहारे हम टिके हैं,
उनकी बढ़ती हुई वंश बेल जग में लहरा गई।
धन्य है संगीत माँ बेटी दोनों का रूप मिला,
धैर्य और धीरज से धरती माँ का दर्जा पा गई।
रचयिता
संगीता गौतम जयाश्री,
सहायक अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय ऐमा,
विकास खण्ड-सरसौल,
जनपद-कानपुर नगर।
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