माँ
माँ बनी,
तो माँ को जाना मैंने।
अंतर्मन में सन्निहित,
असीमित शक्तियों को पहचाना मैंने।
प्रथम सुकोमल स्पर्श से,
मां की ताकत को जाना मैंने।
पूर्ण हुई मैं,
पाकर अनमोल निधि।
मातृत्व का सम्मान मिला,
उपवन में मेरे नन्हा फूल खिला।
कृपा विधि की, हर्ष की पराकाष्ठा,
अविस्मरणीय पल, हुई पूर्णता।
हर्ष अश्रु, सजल नयन,
बस एकटक निहारते तुम्हें।
जब अंक में भरा तुम्हें,
नौ शक्ति का आभास हुआ।
कोमलांगी छुई मुई इस देह का,
नया जन्म नया अवतार हुआ।
सृष्टि की हर कुदृष्टि से,
सुरक्षित कर दूँगी तुम्हें,
हूँ इतनी सक्षम,
आज ये जाना मैंने।
देखा अपना प्रतिबिंब,
मुख मंडल में तुम्हारे,
अटूट स्नेहिल बंधन,
बस मोहपाश में बँधती गई।
प्रसव पीड़ा भूल,
स्वर्णिम स्वप्न सजाने लगी।
ईश्वर का सर्वोत्तम उपहार तुम,
भाग्य पर अपने इठलाने लगी।
दूँ तुम्हें सर्वोत्तम जीवन,
मैंने यह संकल्प धरा।
खुद को विस्मृत कर,
पल-पल तुम को पाला।
हर दुआ में बस,
तुम्हारी खुशियाँ माँगी।
छू लो तुम गगन के सितारों को,
बस तुम पर ही अपना जीवन वारा मैंने।
माँ बनी,
तो माँ को जाना मैंने
अंतर्मन में सन्निहित,
असीमित शक्तियों को पहचाना मैंने।
रचयिता
सुधा गोस्वामी,
सहायक शिक्षिका,
प्रथमिक विद्यालय गौरिया खुर्द,
विकास क्षेत्र-गोसाईंगंज,
जनपद-लखनऊ।
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