मजदूर
सपनों को सजा मेहनत कर खुश हो रहे हैं जो।
पसीने को बहा कर गरीबी में जी रहे हैं जो।
मजदूर हैं साहिब फटी उम्मीदें सी रहे हैं जो।
अपनी हिम्मत की मुस्कान से जी रहे हैं जो।
ढो लेते हैं रोज वज़न उम्मीदों से ज़्यादा।
चीथड़ों में खुशियों की आस लगाये हैं जो।
उम्मीद फिर भी लगाये मन में सम्मान की।
थोड़े से मान के लिए ग़म को पी रहे हैं जो।
हाथों की फटी लकीरों में चंद ख़ुशी सिमट जाए।
"दीप" मजदूर को जीवन में हर ख़ुशी मिल जाए।
रचनाकार
दीपमाला शाक्य दीप,
शिक्षामित्र,
प्राथमिक विद्यालय कल्यानपुर,
विकास खण्ड-छिबरामऊ,
जनपद-कन्नौज।
Comments
Post a Comment