महावीर बजरंगबली

तर्ज-बुन्देली लोकगीत"गारी"


महावीर   बजरंगबली।

कर्म कीर्ति जग गली-गली।।

               (1)

जनक केसरी अंजनी माँयी।

शिक्षा दीक्षा रवि से पायी।

रिद्धि सिद्धि दाता सुखदायी।

रौद्र रूप लख द्वंद द्वेष संग-

कुमति चिता पर बैठ जली।।महा--

             (2)

क्षण विशाल काया पल लघुता।

सेवकाई की अद्भुद क्षमता।

दुर्जय पर तव विजयी प्रभुता।।

चालाकों की एक चली ना-

अपनी जब-जब चाल चली।महा-----

            (3)

हनुमत के गुण जे जन गावैं।

षटविकार नजदीक न आवैं।

राम अनुग्रह सुयश कमावैं।

वैभव सुख समृद्धि शांति अरु-

पावैं संगति भली भली। महा-----

             (4)

अन्तस पवन तनय छवि छापैं।

उनसे डर भय थर-थर काँपैं।

दुर्मति   दूसर   देहरी   नापैं।।

रोग-दोषसे रहित प्रफुल्लित-

मन-उपवन की खिलें कली। महा----


रचयिता

हरीराम गुप्त "निरपेक्ष"
सेवानिवृत्त शिक्षक,
जनपद-हमीरपुर।

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