मेरे प्यारे बेसिक के बच्चे

आखिर क्यों मुझे सब अपने लगते हैं


 क्यों मुझे ऐसा लगता है,

 आखिर क्यों मुझे ऐसा लगता है


 जब भी कोई बेबाक, मासूम खिलखिलाती हँसी दिख जाए, 

गुलाबी शर्ट, कत्थई पैंट, पहने।

 कंधे पे रंग -बिरंगे बस्ते लिये,

 दौड़ते कदमों से विद्यालय की ओर।


 देख कर बस मन करता है

 यह सब मेरे हैं सिर्फ मेरे

 मेरा ही हिस्सा है,

 

 क्यों मुझे ऐसा लगता है,

 आखिर क्यों मुझे ऐसा लगता है।


 आते-जाते रास्तो  पर, 

 अगर दिख जाएँ यह मासूम शरारती।

 बेवजह अधिकार से क्यों टोकती हूँ मैं।

 यह सही है यह गलत है, 

इतने प्यार से क्यों समझाती हूँ मैं।


 रुककर उनसे बातें करना, 

 बड़े अधिकार से बताना, 

मैं भी तुम्हारी मैम  जी हूँ।

 फिर हँसना हँसकर चले जाना, 


 क्यों मुझे ऐसा लगता है 

आखिर क्यों मुझे ऐसा लगता है।


 यह बच्चे किसी स्कूल, 

 जिले या  राज्य में नहीं बँधे।

  यह प्राथमिक स्कूल के बच्चे हैं,

 सब अपने से एक जैसे लगते हैं।


 कहीं भी दिख जाए

 बस इशारे से यही बताते हैं।

 देखो यह हमारे बच्चे हैं 

 हमारे  प्राथमिक के बच्चे हैं।


 क्यों मुझे ऐसा लगता है, 

आखिर क्यों मुझे ऐसा लगता है।


 शायद मेरे जैसे ही

 मेरे सब साथी

 महसूस करते होंगे

  किसी भी स्कूल में जाओ 

कमरों से झाँकती छोटी-छोटी आँखें

 खुसर फुसुर के  स्वर

 दौड़कर फूल लाना 

 मैम जी आप यहीं रह जाइए

 हमें पढ़ाइए

 कुछ पल में ही अटूट रिश्ता बन जाना।


 क्यों मुझे ऐसा लगता है,

 आखिर क्यों मुझे ऐसा लगता है।


 रचयिता

सुधा गोस्वामी,
सहायक शिक्षिका,
प्रथमिक विद्यालय गौरिया खुर्द,
विकास क्षेत्र-गोसाईंगंज,
जनपद-लखनऊ।


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