कोरोना काल मे शिक्षा के नए रास्ते

 शिक्षा के नए रास्ते सुझाता कोरोना काल

कहते हैं आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। कोरोना आपदा के दौरान जन्म लेने बाली मुश्किलों और आवश्यकताओं का समाधान भारत सहित सम्पूर्ण विश्व ने खोजने का काम किया है। इस सम्पूर्ण काल मे बच्चों की शिक्षा सर्वाधिक प्रभावित हुई है मार्च से अभी तक बच्चे स्कूल नहीं जा सके हैं और उनकी पढ़ाई के लिए परेशान सरकार अभिभावक और शिक्षक मिलकर उनसे जुड़ने और संवाद करने के लिए नए नए तरीके खोज रहे हैं। कई तरीके काफी कारगर सावित हुए और कई तरीके अंततः असफल भी हो गए पर दशकों से पुराने परंपरागत तरीक़े से हो रही शिक्षा कुछ महीनों में ही डिजिटल मोड में शिफ्ट होती नजर आ रही है।
     पिछले वर्ष तक बेसिक शिक्षा और माध्यमिक शिक्षा में कार्यरत 6 लाख से अधिक शिक्षकों में बमुश्किल 40-50 हजार शिक्षक ही अपने एंड्राइड मोबाइल का प्रयोग कक्षा कक्ष के पठन पाठन में करते थे। ज्यादातर शिक्षक इसका प्रयोग सोशल मीडिया के इस्तेमाल और व्हाट्सएप के जरिये सूचनाओं के सम्प्रेषण में ही करते थे वहीं करीब 15 प्रतिशत बुजुर्ग शिक्षक ऐसे भी थे जिन्होंने न कभी डिजिटल मोबाइल का इस्तेमाल किया था और न सोशल मीडिया का परंतु कोरोना के बाद सरकार के आदेशों के अनुपालन में शत प्रतिशत अध्यापक शिक्षा में एड्रॉयड फोन का प्रयोग कर रहे हैं और अलग अलग माध्यम से छात्रों से जुड़कर शिक्षा सम्बन्धी सामिग्री का आदान प्रदान कर रहे हैं।
   कोरोना ने लोगों के बीच कार्यक्रम, सेमिनार, कार्यशाला और प्रशिक्षण की परंपरागत व्यवस्था को एक नई राह दिखा दी है। विकास संसाधन केंद्रों पर भारी भरकम रकम खर्च कर आयोजित किये जाने बाले प्रशिक्षण की जगह दीक्षा एप के जरिये शून्य निवेश में आयोजित होने बाले प्रशिक्षण ने ले ली है और इसके कई फायदे हुए। एक जैसा पाठ्यक्रम राष्ट्रीय स्तर के विशेषज्ञों द्वारा समस्त शिक्षकों को उपलब्ध होने लगा है वहीं ऑनलाइन अटेंडेंस और डिजिटल रिकॉर्ड के माध्यम से शतप्रतिशत सहभगिता के साथ प्रशिक्षण की मोनिटरिंग ज्यादा आसान हो गयी है तथा इन प्रशिक्षणों में आय व्यय पर होने बाली शिकायतों पर विराम लगने से उच्चाधिकारी भी राहत की सांस ले रहे हैं। हालांकि भविष्य में डायट और बी आर सी पर प्रशिक्षकों की भर्ती कम होने से नए पद सृजन पर विराम लग सकता है। नवाचारी शिक्षक समूहों को भी गूगल मीट और ज़ूम के माध्यम से आपस मे कार्यशालाओं के आयोजित कराने का शून्य निवेश उपाय प्राप्त हो गया है और इसका प्रयोग करके प्रदेश में हजारों ऑनलाइन वेबिनार आयोजित कराए गए हैं मिशन शिक्षण संवाद द्वारा ही अकेले एक सैकड़ा से अधिक प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाकर 10 हजार से अधिक शिक्षकों को आई सी टी की जानकारी दी गयी। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के चलते भौतिक रूप से आयोजित होने बाले किसी कार्यक्रम के आयोजन की कई समस्याओं का अंत हो गया है।
   सरकारों ने भी तकनीकी का प्रयोग बहुत सार्थक रूप में किया है मुख्यमंत्री महोदय और प्रमुख सचिव की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग तक सीमित ऑनलाइन तकनीकी का प्रयोग अब ब्लॉक स्तर तक के अधिकारी अपने कर्मचारियों के मध्य वार्ता और बैठक आयोजित करने में कर रहे हैं इससे प्रत्येक बैठक में कुर्सी पंडाल चाय नाश्ता पर व्यय होने बाला लाखों रुपया बच रहा है और भविष्य में कोरोना समाप्ति के बाद भी इसी क्रम को आगे बढ़ाकर सरकारी खर्चे को कम करने का प्रयास किया जा सकता है। 
   हालांकि बच्चों की शिक्षा में ऑनलाइन शिक्षण कई मुश्किलें भी लेकर आई है शहरी क्षेत्र के जागरूक अभिभावकों ने तो किसी तरह से अपने बच्चों को एंड्राइड फ़ोन उपलब्ध करा दिए हैं परंतु ग्रामीण क्षेत्र में पढ़ने बाले 70 प्रतिशत छात्रों के अभिभावक आर्थिक अभाव के चलते अपने छात्रों को मोबाइल उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं। वहीं प्राथमिक कक्षाओं के छात्रों के लिए यह तकनीक बहुत दिक्कत भरी है क्योंकि वह ऑनलाइन उपलब्ध कंटेंट से क्या सीख रहे हैं इसका आकलन तुरंत नहीं हो पाता है जो इन बच्चों की सीखने की गति को प्रभावित कर सकता है। इसके अलावा कई घंटों तक मोबाइल स्क्रीन पर देखते रहने के कारण बच्चों को दृष्टि समस्याओं के साथ अन्य शारीरिक दिक्कतों की शिकायतें आना शुरू हो गयी हैं। 
  पर इन सबके बीच शिक्षक डिजिटल रूप से काफी सक्षम हुए हैं और बच्चे भी भविष्य में डिजिटल तकनीकी को जीवन मे ज्यादा आसानी से अडॉप्ट कर सकेंगे। साथ ही तकनीकी के प्रयोग से कक्षाएं अधिक जीवंत मनोरंजक और स्टुडेंट फ्रेंडली बनेगी जिसका सीधा फायदा ग्रामीण क्षेत्र की शिक्षा गुणवत्ता पर देखने को मिलेगा। वहीं प्रशिक्षण कार्यक्रमो के अधिक लाभकारी होने से इसका फायदा भी समग्र शिक्षा को मिलेगा।

अवनीन्द्र सिंह जादौन
संयोजक मिशन शिक्षण संवाद 
उत्तर प्रदेश

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