चिट्ठी

दादी कहतीं, आती थी चिट्ठी।

बातें करती थी वह मीठी।

परवाह सभी की करती थी वह।

पैगाम अपनों तक पहुँचाती थी वह।


इंतजार हम उसका करते थे

देख डाकिया खुश होते थे।

बहुत दिनों तक न आती थी जब

मायूस बड़ा करती थी तब।


सब खैरियत देती थी हमको

सुकून बड़ा पहुँचा मन को।

बहुत दिनों से मिली न अब वो।

जाने कहाँ खो गयी वह तो।


पूछा मैंने कैसी थी वो?

क्या बादल के जैसी थी वो।

दीदी जैसी चंचल थी या

मेरे जैसी थी भोली वो।


कैसी थी आवाज उसकी

चलती कितनी तेज थी वो।

दिखती थी कैसी बोलो न दादी?

कहाँ खो गयी चिट्ठी वो?


रहस्यमयी मुस्कान फिर

दादी के चेहरे पर छाई।

जाकर बक्से से अपने

चिट्ठी हाथ में लेकर आयीं।


देखा मैंने छोटी सी थी चिट्ठी

बातें थीं मगर उसमें मीठी मीठी।

प्यार भरा था मन भर उसमें

प्रीत भरे हों जैसे नगमे।


मेरे मन में बहुत बातें थीं इकट्ठी

पापा को झट लिख डाली चिट्ठी।

पापा ने भी झट उत्तर भेजा

चिट्ठी आते मैंने भी देखा।


रचयिता
अनीता ध्यानी (अनि),
प्राथमिक विद्यालय देवराना,
विकास खण्ड-यमकेश्वर,
जनपद-पौड़ी गढ़वाल,
उत्तराखण्ड।

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