अशफाक उल्ला खान

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी,

भर दी जिसने देशभक्ति की चिंगारी,

नमन अशफाक उल्ला खान को,

ना बनने दिया भारत माँ को बेचारी।


22 अक्टूबर उन्नीस सौ को चमका था यह सितारा,

हिंदुत्व से जिसने ना किया कभी किनारा

घरवालों का विरोध भी रोक नहीं पाया,

राम प्रसाद बिस्मिल का बना मजबूत सहारा।


उर्दू के थे बेहतरीन शायर उपनाम हसरत,

उर्दू व  अंग्रेजी में भी थी इनकी लिखावट,

"मातृवेदी" पार्टी के बने हरफनमौला सदस्य,

 हिंदू मुस्लिम एकता की थी अनूठी सौगात।


काकोरी कांड में इनकी भूमिका थी प्रमुख,

9 अगस्त 1925 की शाम को रहे थे सब निरख,

तिजोरी तोड़ने में दिखाया फौलादी ताकत का नजारा,

देश प्रेम की प्रबल कर दी थी उन्होंने अलख।


गिरफ्तारी की सूचना पर चली एक चाल,

माफीनामा लिखा माँगने को अंग्रेजों से ढाल,

भनक लग गई अंग्रेजों को नहीं किया माफ,

19 दिसंबर 1927 को समाए काल के गाल।


फाँसी का फंदा चूमा हो गए शहीद,

ताकि देश में हो खुशी से दशहरा और ईद,

याद रखेगा हिंदुस्तान तुम्हारा यह बलिदान,

सर्वधर्म समभाव की मिसाल की बुलंद।


रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।


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