43/2025, बाल कहानी- 10 मार्च

बाल कहानी - ध्यान का महत्व (भाग- 2)
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सायंकाल में राजा गुरुकुल के प्रधान शिक्षक से मिले और उन्होंने राजकुमार को लेकर अपनी चिन्ता और असन्तोष से उन्हें परिचित कराया। आचार्य ने राजा का यथोचित सत्कार करते हुए उनकी बात को गम्भीरता से सुना, पर उस समय कोई उत्तर नहीं दिया। हाँ, राजा से गुरुकुल में रात्रि निवास के लिए आग्रह किया। प्रातः काल आचार्य ने अपने विद्यार्थियों को अपने साथ एक पात्र लेकर नदी तट पर आने को कहा। विद्यार्थियों ने अपनी-अपनी इच्छा अनुसार पात्रों का चयन कर लिया और नदी तट की ओर चल पड़े। आचार्य ने राजा से भी चलने का आग्रह किया। नदी तट पर पहुँचकर आचार्य ने विद्यार्थियों से जल भरने के लिए कहा। सारे विद्यार्थी अपने-अपने पात्रों में जल भरने लगे। राजकुमार भी अनमने से अपने पात्र में जल भरने लगा। जब सब ने जल भर लिया तो आचार्य विद्यार्थियों से पूछने लगे कि, "अरे! तुम्हारे पात्र में तो बहुत कम जल है.. क्या नदी ने जल देने से मना कर दिया? या फिर तुम्हारे पात्र में तो बहुत सारा जल है लगता है! नदी तुम्हें अधिक स्नेह करती है या फिर तुम्हारा पात्र तो बड़ा है फिर भी पूर्ण रूप से भरा नहीं लगता है। आधा भरते ही नदी ने मना कर दिया होगा।" इतना कहते-कहते आचार्य ने राजकुमार की ओर देखा। राजकुमार अपने पात्र में रेत, आस-पास बहकर आये कंकड़-पत्थर सब भर रहे थे। राजा को आचार्य की यह गतिविधि समझ ना आयी। उन्होंने प्रश्नवाचक दृष्टि से आचार्य की ओर देखा! आचार्य मन्द-मन्द मुस्कुराते हुए बोले, "महाराज! जल का स्रोत सबके लिए बराबर है, पर प्राप्ति तो हमें हमारे पात्र अनुसार ही होगी। यही नहीं.. कुछ विद्यार्थी कंकड़-पत्थर, रेत से ही अपने पत्र को इतना भर लेते हैं कि उसमें शुद्ध जल के लिए बहुत थोड़ा सा स्थान बचता है अर्थात मस्तिष्क में यदि इधर-उधर की बातें भारी है तो उसमें प्रोडक्ट ज्ञान कहाँ से समायेगा।" राजा की आँखें खुल गई थीं। राजकुमार के दुर्बल प्रदर्शन का कारण वह जान चुके थे। आचार्य ने राजकुमार को स्नेह से अपने पास बुलाया और उसे ध्यान की कक्षा में अधिक समय व्यतीत करने की सलाह दी। अब बारी राजू की थी। "कुछ समझे राजू?" दादी ने प्यार भरी झिड़की दी। "तू भी तो राजकुमार की तरह पढ़ते समय किन्हीं अन्य विचारों में खोया रहता है तो फिर अंक तो कम मिलेंगे ही।" "ठीक है, दादी! अब मैं खूब मन लगाकर पढ़ाई करूँगा।" राजू खुश होकर बोला।

#संस्कार_सन्देश - 
पूरे मन से किया गया कार्य ही सफल होता है।

कहानीकार-
#डॉ०_सीमा_द्विवेदी (स०अ०)
कम्पोजिट विद्यालय कमरौली
जगदीशपुर, अमेठी (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद 
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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