37/2025, बाल कहानी- 03 मार्च


बाल कहानी - काश
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रचना सरल, सुशील तथा शान्त स्वभाव की लड़की थी। उसके पिता जी अचानक किसी गम्भीर बीमारी का शिकार हो गये। इस कारण परिवार के सभी सदस्यों ने यह निर्णय लिया कि रचना के हाथ पीले कर दिए जाएँ। रचना का विवाह बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास से हो गया। वह अपने ससुराल के लिए विदा हो गयी और हँसी-खुशी से रहने लगी। इधर परिवार वालों के अथक सहयोग और ईश्वरीय कृपा से उसके पापा के स्वास्थ्य में आशातीत सुधार हुआ और वे अपना जीवन अच्छे से जीने लगे।
कुछ साल बीत जाने के बाद रचना को यह पता चला कि उसके रहते हुए उसके पति ने एक और विवाह कर लिया है तो उसके पैरों के नीचे की मानो जमीन ही खिसक गयी। अपनी इस स्थिति के बारे में उसने अपने पिता को बताना उचित न समझा। परिणाम यह हुआ कि उसके हालात दिनों-दिन बदतर होने लगे। 
एक दिन उसके ससुराल वालों ने उसे उसके मायके यह कह कर वापस भेज दिया कि, "वह घर का कोई भी काम अच्छे से नहीं करती तथा उसको पागलपन भी है।" रचना मायके वापस तो आ गयी, लेकिन अब वह पहले जैसी न रही। किसी तरह दिन गुजरने लगे। उसके पिताजी ने उसका इलाज इत्यादि कराया। उसके जीवन संसार में हलचल होने के कारण वह पूरी तरह तो ठीक न हो पायी, लेकिन कुछ ठीक हो गयी। उसको ससुराल भेजे जाने की तैयारी होने लगी। उसके ससुराल वालों ने उसे ले जाने से मना कर दिया। बहुत कुरदने पर उसने अपना सारा हाल अपने पिता जी को कह सुनाया। सब जानकर वे बहुत दुःखी हुए और मन ही मन चिन्तन करने लगे कि, "काश! हमने बेटी के ब्याह से ज्यादा उसके कैरियर पर ध्यान दिया होता तो शायद बेटी को कुछ कम परेशान होना पड़ता और लोगों को अपने बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ संस्कार भी देना चाहिए, जिससे बच्चे ऐसे गलत कदम न उठायें ।

#संस्कार_सन्देश -
शिक्षा और संस्कार जीवन की प्राथमिक एवं अनिवार्य आवश्यकता है।

कहानीकार-
#सरिता_तिवारी (स०अ०)
कम्पोजिट विद्यालय कन्दैला
मसौधा (अयोध्या)

✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद 
#दैनिक_नैतिक_प्रभात

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