42/2025, बाल कहानी- 08 मार्च
बाल कहानी - ध्यान का महत्व (भाग- 1)
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स्कूल से लौटकर आज राजू रोज की तरह चहचहा नहीं रहा था। दादी ने चश्मा साफ करते हुए पूछा, "अरे राजू! क्या हुआ? स्कूल में किसी ने कुछ कहा क्या?" राजू दादी से लिपटकर रोने लगा। दादी हतप्रभ् रह गयी। उन्हें तो उछलते-कूदते राजू का अभ्यास था। थोड़ी देर तक चुप्पी छाई रही। फिर राजू फूट पड़ा, "दादी मुझे सत्र परीक्षा में पहले से कम अंक मिले!"
"बस, इतनी सी बात!" दादी ने राजू को प्यार करते हुए कहा। "चलो पहले कपड़े बदलकर हाथ-मुँह धो लो.. भोजन करो, फिर इस पर चर्चा करते हैं।" तब तक मुनिया भी कपड़े बदलकर आ चुकी थी। मुनिया काफी उत्साहित थी, पर राजू का उदास चेहरा देखकर उसने कुछ नहीं कहा। भोजन करते समय कोई कुछ नहीं बोला। राजू और मुनिया थोड़ी देर बाद होमवर्क करने लगे। दादी ने अनुभव किया कि मुनिया तो मनोयोग से अपना कार्य कर रही है, पर राजू कभी अपनी जगह पर लिखना छोड़कर मेज पर रखी वस्तुओं को अनायास बिखरने लगता है। याद करते समय भी वह किताब से हटकर शून्य में टकटकी लगाये निहारता। कभी किताब पर निरर्थक शब्द लिखता। दादी की पेशानी पर चिन्ता के बल पड़ गए। पर अचानक ही उनके चेहरे पर प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी, जैसे उन्हें अपनी किसी समस्या का हल मिल गया हो। इधर राजू और मुनिया भी होमवर्क करने के बाद टीवी देखने लगे। धीरे-धीरे शाम गहराने लगी। भोजन के उपरान्त राजू और मुनिया हमेशा की तरह दादी के पास आये। कहानी सुनाने के लिए दादी ने उन्हें प्यार से लिटाया और कहानी प्रारम्भ ही करने वाली थी कि राजू बोल उठा, "दादी.. दादी! मुझे टीचर ठीक से नहीं पढ़ाता, इसलिए मेरे नंबर बहुत कम आए हैं।" दादी ने कहा, "चलो, राजू! आज मैं तुम्हें इसी पर कहानी सुनाती हूँ। बहुत समय पहले की बात है... नगर से दूर एक गुरुकुल था। वहाँ पर दूर-दूर से बच्चे शिक्षा ग्रहण करने आते थे। वहाँ पर नगर के राजा का राजकुमार भी शिक्षा ग्रहण कर रहा था। एक बार राजा नगर भ्रमण के लिए निकला। उसने सैनिकों को आज्ञा दी कि, "चलो! गुरुकुल का भी निरीक्षण कर लिया जाये। साथ ही राजकुमार की क्षमताओं का भी पता चल जायेगा।" राजा जब गुरुकुल पहुँचा, तब शिक्षा की विभिन्न शाखाओं में विद्यार्थियों द्वारा जो कुछ सीखा गया था, उसका प्रदर्शन चल रहा था। राजा भी चुपचाप दर्शक-दीर्घा में बैठ गया। प्रदर्शन परीक्षा बहुत देर तक चलती रही और राजा ने पाया कि राजकुमार शस्त्र और शास्त्र दोनों प्रकार की परीक्षाओं में अन्य विद्यार्थियों से बहुत पीछे है। राजा को चिन्ता होनी स्वाभाविक थी। (शेष कहानी अगले भाग में...)
संस्कार_सन्देश -
पूर्ण शिक्षण कार्य हुए बिना हमें व्यर्थ संशय नहीं करना चाहिए।
कहानीकार-
#डॉ०_सीमा_द्विवेदी (स०अ०)
कम्पोजिट विद्यालय कमरौली
जगदीशपुर, अमेठी (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात
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