38/2025, बाल कहानी- 04 मार्च


बाल कहानी- विवेकहीनता
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एक कस्बे में एक मनोज नाम का गरीव मजदूर रहता था। वह दिहाड़ी मजदूरी के साथ-साथ खेती भी किया करता था। वह बहुत कम पढ़ा लिखा होने के कारण अपने आपको अक्सर कोसता रहता था। वह सोचता था कि, "वह अपने बेटे को अच्छी परवरिश देगा और अच्छे स्कूल में पढ़ायेगा।"
उसका बेटा अरविंद भी बहुत होनहार छात्र था। गाँव के ही सरकारी स्कूल में पढ़ता था। 
मनोज को हमेशा ऐसा लगता था कि सरकारी स्कूल में अच्छी पढ़ाई नहीं होती है। मनोज और उसकी पत्नी दोनों ने सोचा कि हम और ज्यादा मेहनत करेंगे और बच्चे को प्राइवेट स्कूल में दाखिला करवा दिया।
कुछ समय तक तो ठीक चला लेकिन कुछ महीने बाद दोनों पति-पत्नी ज्यादा काम करने के कारण बीमार और परेशान रहने लगे। 
प्राइवेट स्कूल की तरफ से फीस का दवाव बढ़ने लगा, जिसके कारण मनोज ने छोटी-मोटी चोरी करने का प्रयास किया और पकड़ा गया। 
पुलिस बालों को पता चला कि फीस भरने के लिए चोरी की तो पुलिस बालों ने उसे समझाया कि, "शिक्षा पर विद्यालय का प्रभाव नाममात्र का रहता है। सरकारी विद्यालयों से पढ़कर बहुत लोग बड़े-बड़े पदों पर पहँचते हैं।" 
मनोज ने अपराध किया। उसका पता चलने पर अरविंद और उसकी माँ को बड़ा दुःख हुआ। मनोज भी बहुत शर्मिन्दा हुआ, चूँकि मनोज ने अपराध किया तो उसे सजा मिलना तय था। अरविंद ने सरकारी विद्यालय में भी प्राइवेट विद्यालय की तरह अच्छा प्रदर्शन किया।

#संस्कार_सन्देश -
शिक्षा प्राप्त करने के लिए हमें सरकारी विद्यालय को महत्व देना चाहिए, न कि प्राइवेट विद्यालयों को। मन से भ्रम दूर करें।।

कहानीकार-
#धर्मेंद्र_शर्मा (स०अ०)
कन्या० प्रा० वि० टोडी-फतेहपुर
गुरसराय, झाँसी (उ०प्र०)

✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद #दैनिक_नैतिक_प्रभात

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