श्रद्धांजलि
ए महफिलो, ए चिरागो, "वतन ए उल्फत" हुए।
घोल के खुशबू चमन में, दुनिया से रुख़सत हुए।।
तुम्हारे जाने के गम में, माँ का आँचल सूखा होगा।
सीने में धसने वाली गोली ने, खुद को कोसा होगा।।
सुहाग संग छिन गयी वो, बुढ़ापे की इकलौती लाठी।
तुम्हारे प्राणों की आहुति से, धन्य हो गई भारत की माटी।।
खलनायक आज नायक बन गये, नायक खलनायक हुए--
तुम्हारी कुर्बानी की स्मृति में, चिड़ियों ने चहचहाना छोड़ दिया।
पेड़ों ने पत्ते छोड़े दिये तो, हवाओं ने बहना छोड़ दिया।।
तितलियों ने इतराना छोड़ दिया, भँवरों ने मचलना छोड़ दिया।।
सूरज भी गम में डूब गया, तारों ने चमकना छोड़ दिया।।
रो-रो कर समंदर उफन रहा, पर्वत घाटी क्रन्दन किये--
आजादी के इस रंगोत्सव पर, तिरंगा फहराने आये हैं।
शहीदों के बलिदानी गाथाओं की, कहानी लेकर आये हैं।।
मातृभूमि क्या होती है, यह समझाने आये हैं।
तुम्हारे प्राणों की आहुति पर, शीश झुकाने आये हैं।।
शहीदों की चिताओं पर, सबजन नतमस्तक हुए--
सदियों पहले विश्वगुरू वाला, वह भारत कहाँ गया।
मातृभूमि और मातृभाषा का, वह सम्मान कहाँ गया।।
पुरातन ज्ञान संस्कृति की, भाषा को हम छोड़ रहे।
टूटी-फूटी अंग्रेजी से हम, अपना नाता जोड़ रहे।।
क्षुद्र सुखों की चाहत में, हम कितने परवान हुए--
रचयिता
अजय विक्रम सिंह,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मरहैया,
विकास क्षेत्र-जैथरा,
जनपद-एटा।
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