प्रेमचंद्र और गोदान
प्रेमचंद का एक उपन्यास,
था नाम जिसका गोदान।
करुणा सहानुभूति से भरा,
था नायक होरी बड़ा महान।।
बंधु बांधवों से करता प्यार,
बड़ा मेहनती श्रेष्ठ किसान।
निर्धनता में पूरा बीता जीवन,
ना चिन्ता का नामोनिशान।।
साहूकार, पटवारी, पंचायत,
दरोगा और धर्म के ठेकेदार।
बहुत करे होरी का शोषण,
मिलती उसको पीड़ा अपार।।
मर्यादा की रक्षा के कारण,
कर्ज उठाया देकर अनाज।
और बचाया हीरा भाई को,
घर के बिगडे़ सारे काज।।
भरी दुपहरी जेठ की देखो,
कठिन परिश्रम करे बेचारा।
व्याकुल रहे भूख से हरदम,
छूटे प्राण न मिला सहारा।।
किसान की सच्ची कहानी,
नित हम सबको देती संदेश।
स्वाभिमान और आत्मसमर्पण,
यही मानव का है सच्चा वेश।।
रचयिता
गीता देवी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मल्हौसी,
विकास खण्ड- बिधूना,
जनपद- औरैया।
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