होली आयी

रंग-गुलाल उड़ाती होली,

लेकर आयी है रंगोली।

सबको गले लगाएँ आओ,

रंग-अबीर उड़ाएँ आओ।।


लाल, गुलाबी, हरे, बैंगनी,

पीले, नीले भर‌कर न्यारे।

सबको मारें हम मस्ती में,

जमकर रंगों के गुब्बारे।।


"बुरा न मानो" होली आयी,

पकवानों की टोली लायी।

पापड़-गुझिया और कचौड़ी,

चिंकी-मिंकी सबने खायी।।


लेकर रंगभरी पिचकारी,

चीनू ने बीनू को मारी।

नर-नारी सब मौज मनाते,

मिल खुशियों की होरी गाते।।


नये, सजीले, सुन्दर गहने,

कपड़े सब लोगों ने पहने।

मेहमानों को गले लगाते,

द्वेषभाव को आज भुलाते।।


रंग फिजा में घुलते जाते,

फागुन की है मस्ती छायी।

यौवन आया है बागों में,

शीत ऋतु की हुई विदाई।।


आम सज गये बौर-बौर हो,

कोयल कूक रही मतवाली।

चने, मटर फलियाँ इतराएँ,

गेहूँ की भी झूमे बाली।। 


ओढ़े चूनर रंग है धानी,

जौ, अलसी औ सरसों आली।

भून चबाते होला हम सब,

सोंधी-सोंधी लगती बाली।।


पल्लव से शोभित हैं तरुवर।

बहने लगी पवन सुखदायी।

कोकिल बोले कुहू-कुहू कर,

कृषकों में खुशहाली छायी।।


रचयिता

शिखा वर्मा,

इं०प्र०अ०,

उच्च प्राथमिक विद्यालय स्योढ़ा,

विकास क्षेत्र-बिसवाँ,

जनपद-सीतापुर।

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