रामराज

उत्सव सा उत्साह भरा है, मेरे जीवन गाँव में।

परमशान्ति है रामराज है, मेरे जीवन गाँव में।।

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मेरे गाँव में मानसरोवर, निस्पृहता के कमल खिलें।

नीर-क्षीर के बड़े पारखी, हंस विवेकी यहाँ  मिलें।।

भाव-विचार हैं लोग लुगाई, नितप्रति रोज नहाते हैं।

मैल वृत्तियाँ धो-धो करके, निर्मल  चित्त  बनाते हैं।।

सूप स्वभाव के बाशिन्दे हैं, मेरे जीवन गाँव में।

परमशान्ति है---------------------------।। 


ऊँच-नीच का भेद नहीं है, छुआ-छूत का नाम नहीं।

समरसता के रसिया बसते, राग-द्वेष का काम नहीं।।

उत्पीड़क शोषक हैं बहिष्कृत, इनका यहाँ निवास नहीं।

परपीड़क  परनिंदक रहते, ऐसा  कोई  कयास  नहीं।।

परहित  साधक घनी बस्तियाँ, मेरे  जीवन  गाँव में।

परमशान्ति है ------------------------------।। 


ज्ञान वेदिका  की  ज्वाला में, अहंकार घृत  आहुतियाँ।

स्वार्थ लोभ साकिल्य के संग में, काम क्रोध की आहुतियाँ

होता रहता यज्ञ निरंतर,  दुःख-सुख   पहरेदारी  में।

धीरज  धरम  यहाँ  संरक्षित, नेकी  की सरदारी  में।।

निर्भयता का  मन्त्र  गूँजता,  मेरे  जीवन  गाँव  में।

परमशान्ति है------------------------।। 


आवभगत मेहमान नेवाज़ी, देहरी-देहरी आदर  से।

मिलनसारिता  स्मितवाली, धूप ढकी ज्यों बादर से।।

पापकर्म कर गए पलायन, झूठ प्रपञ्च के नगरों में।

चौराहों पर  सत्य खड़ा है, प्रीति  प्रेम  हैं  डगरों  में।।

करुणा  ममता  दया  फ़क़ीरी, मेरे  जीवन  गाँव  में ।

परमशान्ति है-------–----------------।। 


जीवन की बस्ती में मंदिर, मस्जिद, गिरजा, गुरुद्वारे।

अनहद नाँद से गूँज रहे हैं, परमेश्वर  के  जयकारे।।

वासनाओं की बस्ती उजड़ी, राग मोह के संग गयी।

अखिल विश्वकल्याण कामना, एक बची जो नहीं गयी।।

ज्ञान  भक्ति "निरपेक्ष" योग  हैं, मेरे  जीवन  गाँव  में।

परमशान्ति है रामराज है ------------------------------


रचयिता

हरीराम गुप्त "निरपेक्ष"
सेवानिवृत्त शिक्षक,
जनपद-हमीरपुर।

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