पुरुषोत्तम श्री राम
अपने अंदर का रावण मारो,
दुर्व्यसनों का त्याग करो।
तन मन गंगा सा पावन कर लो,
और प्रभु का गुणगान करो।
सदाचार और संस्कारों का,
निशदिन ही सम्मान करो।
ईमान धरम पर आँच न आए,
मानवता का बखान करो।
बैर करो ना संग किसी के,
सबसे ही अनुराग करो।
हक न छीनो कभी किसी का,
संग सबके ही उपकार करो।
दया को अपने दिल में समा लो,
और करुणा से श्रृंगार करो।
छल और कपट से नाता तोड़ो,
लालच पर भीषण वार करो।
मात पिता की करके सेवा,
खुद को श्रवण कुमार करो।
कुल की मर्यादा रक्षा खातिर,
खुद को पुरुषोत्तम राम करो।
रचनाकार
सपना,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय उजीतीपुर,
विकास खण्ड-भाग्यनगर,
जनपद-औरैया।
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