जगत की जिंदगानी हूँ
रचा है डूबकर जिसको
खुदा की वो कहानी हूँ।
न अबला हूँ न बेचारी
जगत की जिंदगानी हूँ।।
किसी ने माँ कहा मुझको
कभी बहना बुलाया है,
कभी साथी कभी सहचर
कभी हमदम बनाया है।
अनेकों रूप में बिखरी
विरासत हूँ समर्पण की,
तेरे आँगन को महकाती
बनी बिटिया सयानी हूँ।।
न अबला हूँ न बेचारी
जगत की जिंदगानी हूँ।।
दीया बलिदान निज सुत का
वतन की लाज राखी है,
वो पन्नाधाय मैं ही हूँ
लिखा इतिहास साखी है।
उठी हुँकार कर जब मैं
तो शक्ति रूप में आई,
मैं दुर्गा रूप गायत्री
बनी झाँसी की रानी हूँ।।
न अबला हूँ न बेचारी
जगत की जिंदगानी हूँ।।
दिखाया रूप ममता का
बनी मैं मात अनुसुइया।
जहाँ पर झूलते झूला
जगत सृष्टि के रचैया,
पिलाया दूध ईश्वर को
यशोदा देवकी बनकर।
कभी राधा कभी रुक्मणि
कभी मीरा दीवानी हूँ।।
न अबला हूँ न बेचारी
जगत की जिंदगानी हूँ।।
उषा की धूप बन खिलती
चाँदनी बनके हँसती हूँ,
जगत आंगन की तुलसी बन
सभी संताप हरती हूँ।
बनी जब क्रांति की बाला
समय की गति बदल डाली,
झुके यमराज भी मुझसे
सती शक्ति की सानी हूँ।।
न अबला हूँ न बेचारी
जगत की जिंदगानी हूँ।।
मैं माँ गर्भ में आई तो मारा
जाँच कर मुझको,
जो जीवन दे दिया तो फिर
जलाया आग में मुझको।
काट दो सोच के बंधन
तोड़ दो भेद के ताले,
पिता माता मैं तेरा रूप हूँ
तेरी निशानी हूँ।।
रचा है डूबकर जिसको
खुदा की वो कहानी हूँ।
न अबला हूँ न बेचारी
जगत की जिंदगानी हूँ
रचयिता
यशोधरा यादव 'यशो'
सहायक अध्यापक,
कंपोजिट विद्यालय सुरहरा,
विकास खण्ड-एत्मादपुर,
जनपद-आगरा।
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