तार दे माँ शारदे
जय भवानी, शारदेमाँ, शारदे -माँ शारदे।
भक्त को, भव सिंधु से माँ, तार दे माँ शारदे।।
मैं भला हूँ या बुरा हूँ, भक्त हूँ माँ आपका।
जो भी हूँ जैसा भी हूँ माँ, पुत्र हूँ मैं आपका।।
चाहिए क्या ज़िन्दगी को? शांति का व्यवहार दे।
जय भवानी--------------------------------।।
तुम हो धरती, तुम पवन हो, तुम गगन के नखत तारे।
गुरुत्वाकर्षण बल तुम्ही हो, संगठित तुमसे ये सारे।।
मेरी धी को अपनी सारिता- ज्ञान की शुचि धार दे।
जय भवानी----------------------------------।।
'सिद्धिदात्री'संत-मुनि को, सिद्धियाँ तुम देती हो माँ।
कुवृत्तियाँ मन-कलुषनाशी, काली भी बन जाती हो माँ।।
कामना से मुक्ति का माँ, मुझको भी उपहार दे।
जय भवानी -------------------------------------------।।
आयें-जायें दुःख-सुख-यश, कीर्ति अपयश सबका स्वागत।
खिन्नता आये न मन में, कर्म गत हों या हों आगत।।
प्यार जो "निरपेक्ष" है माँ, वह सनातन प्यार दे
जय भवानी -------------------------------------------।।
रचयिता
हरीराम गुप्त "निरपेक्ष"
सेवानिवृत्त शिक्षक,
जनपद-हमीरपुर।
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