मेरा वतन क्या करे
मेरे देश में ऐ लोगों अब डरपोक सवेरा है,
सूरज ही यहाँ आज अपनी ही किरणों का लुटेरा है।
जा बच के निकल जा तू और जान बचा ले अपनी,
यह देश है अब नागों का हर शख्स सपेरा है।
पनघट पर बिछाया है आज जाल मछरियों ने,
हम राज कहाँ जानें हम तो नादान मछेरा हैं।
अब कैसे बचाएँगे हम धर्म यहाँ अपना,
दौलत के चक्कर में आज सबने गरीब का इमान सकेरा है।
चांद में भी आग हो तो गगन क्या करे,
फूल ही गर शूल हो तो यह चमन क्या करे।
देश के हाल पर तिरंगे ने यूँ कहा,
कुर्सी ही गर भ्रष्ट हो तो यह मेरा वतन क्या करे।
रचयिता
विदिशा पंवार,
सहायक शिक्षिका,
उच्च प्राथमिक विद्यालय जतुली,
विकास क्षेत्र -हरियावां,
जनपद - हरदोई।
सूरज ही यहाँ आज अपनी ही किरणों का लुटेरा है।
जा बच के निकल जा तू और जान बचा ले अपनी,
यह देश है अब नागों का हर शख्स सपेरा है।
पनघट पर बिछाया है आज जाल मछरियों ने,
हम राज कहाँ जानें हम तो नादान मछेरा हैं।
अब कैसे बचाएँगे हम धर्म यहाँ अपना,
दौलत के चक्कर में आज सबने गरीब का इमान सकेरा है।
चांद में भी आग हो तो गगन क्या करे,
फूल ही गर शूल हो तो यह चमन क्या करे।
देश के हाल पर तिरंगे ने यूँ कहा,
कुर्सी ही गर भ्रष्ट हो तो यह मेरा वतन क्या करे।
रचयिता
विदिशा पंवार,
सहायक शिक्षिका,
उच्च प्राथमिक विद्यालय जतुली,
विकास क्षेत्र -हरियावां,
जनपद - हरदोई।
जबर्दस्त शानदार लाजवाब
ReplyDeleteTy sir
Deleteजबर्दस्त शानदार लाजवाब
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