ज्ञान का दीप
सबको मिलकर चलना है।
हाथ मिलाकर बढ़ना है।
ज्ञान का दीप जलाकर हमको,
अंधेरा अज्ञान का मिटाना है।
जीवन को सार्थक करना,
लक्ष्य हमें बनाना है।
चींटी की तरह मेहनत करना,
खुद को भी सिखलाना है।
गिर -गिरकर खुद ही उठ जाना ,
यही मार्ग अपनाना है।
किसी भी आलोचना से हमको,
कभी नही घबराना है ।
याद रहे फलदार वृक्ष पर ही,
पत्थर फेंका जाना है।
लाचारी का हमको कोई,
बहाना नही बनाना है।
सत्य, प्रेम, निष्ठा का दीपक,
हर घर में जलाना है।
ज्ञान का दीप जलाकर हमको,
अंधेरा अज्ञान का मिटाना है ।
हाथ मिलाकर बढ़ना है।
ज्ञान का दीप जलाकर हमको,
अंधेरा अज्ञान का मिटाना है।
जीवन को सार्थक करना,
लक्ष्य हमें बनाना है।
चींटी की तरह मेहनत करना,
खुद को भी सिखलाना है।
गिर -गिरकर खुद ही उठ जाना ,
यही मार्ग अपनाना है।
किसी भी आलोचना से हमको,
कभी नही घबराना है ।
याद रहे फलदार वृक्ष पर ही,
पत्थर फेंका जाना है।
लाचारी का हमको कोई,
बहाना नही बनाना है।
सत्य, प्रेम, निष्ठा का दीपक,
हर घर में जलाना है।
ज्ञान का दीप जलाकर हमको,
अंधेरा अज्ञान का मिटाना है ।
रचनाकार
अर्चना रानी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय मुरीदापुर,
शाहाबाद, हरदोई।
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