एक गणित यह भी
(समय-अनुशासन का पालन करने वाले सभी साथियों को नमन करते हुए अपने परिवेश
की एक कड़वी सच्चाई की तकलीफदेह अभिव्यक्ति) (सुधी साथी कृपया अन्यथा न लें)
जब 100 विद्यार्थियों वाले विद्यालय में हममें से कोई शिक्षक 15 मिनट देर
से विद्यालय पहुंचता है तो नुकसान सिर्फ 15 मिनट का नहीं होता बल्कि
विद्यार्थियों के 100*15=1500 मिनट अर्थात 25 घंटे बर्बाद हो चुके होते
हैं।
जो शिक्षक 10-15 मिनट देर से पहुँचने को सामान्य बात समझते
हैं, क्या वे विद्यालय समय की समाप्ति के 10-15 मिनट बाद भी 'सामान्यतः'
रुक जाते हैं?
यदि विद्यालय समय समाप्ति के एक मिनट आगे रुकने पर हम
खुद को ठगा हुआ या शोषित महसूस करते हैं, तो विद्यार्थियों के अनगिनत
मिनट्स और घंटों को ठगना, उन्हें शोषित करना न्यायोचित कैसे ठहरा सकते हैं?
हम जब पारिवारिक कार्यों आदि की आड़ में देर से विद्यालय पहुँचने या समय से पहले विद्यालय छोड़ने को अपनी #नियमित_आदत
बना लेते हैं तो भूल जाते हैं कि परिवार की मजबूती की बुनियाद में वही
बच्चे हैं जिनके कारण हमें वेतन मिल रहा है और जो नादान होने के कारण अपने
साथ हो रहे अन्याय का प्रतिकार तो दूर, उसे समझ भी नहीं पा रहे हैं।
ईश्वरीय न्याय / प्राकृतिक न्याय क्या अंततः सब समीकरण बराबर नहीं कर देगा?
साभार:-
प्रशांत अग्रवाल जी
मिशन शिक्षण संवाद बरेली
प्रशांत अग्रवाल जी
मिशन शिक्षण संवाद बरेली
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