प्रकृति का संदेश
प्रकृति का संदेश
मनुष्य ने लगातार विकास के नाम पर प्रकृति के नियमों और सिद्धांतों का विनाश किया और तेजी से करते जा रहे हैं। जहाँ एक ओर सरकारें प्राकृतिक समानता और न्याय का शहरीकरण करते रहे हैं। वही दूसरी ओर गांव और गरीबों में विषमता का जहर बोकर लगातार शहरीकरण को बढावा देते रहे। यदि आप गांव में रहते हैं। तो आपको कम भोजन पानी सुख सुविधाओं की जरूरत होती है। यदि आप शहर में रहते हैं तो अधिक भोजन पानी सुख सुविधाओं की जरूरत होती है। जैसा कि लगातार सरकारों की सोच रही। नतीजा शहरीकरण बढ़ता गया। आज उसी विषमतावादी सोच का नतीजा है कि प्रकृति भी अपना तरीका बदलने पर मजबूर हो रही है।
जो मनुष्य द्वारा विकसित क्षेत्रों को तहस नहस करने के लिए प्रतिक्रिया को तैयार हो रही है। जिसका परिणाम आप सबके सामने कभी बाढ़, कभी भूकम्प, कभी सूखा और कभी अतिवृष्टि के रूप लगातार आ रहा है।
जो मनुष्य द्वारा विकसित क्षेत्रों को तहस नहस करने के लिए प्रतिक्रिया को तैयार हो रही है। जिसका परिणाम आप सबके सामने कभी बाढ़, कभी भूकम्प, कभी सूखा और कभी अतिवृष्टि के रूप लगातार आ रहा है।
इसलिए हम सब प्रकृति के नियमानुसार जीना सीखें। प्रकृति के परिवार पेड़- पौधो, पशु- पक्षियों और नदी- तालाबों की रक्षा करें। मानवता की रक्षा करें। आधुनिकता की अन्धी दौड़ से बचें। जीवन जीने के लिए दिन है और सोने के लिए रात। इसलिए प्रकृति के नियमानुसार सोने और जागने की आदत डालें। मानवीय श्रम और मानवीय निर्भरता को बढ़ावा देकर मानवता की रक्षा करें। और मशीनीकरण के अतिवाद से बचें।
विमल कुमार
कानपुर ( देहात )
विमल कुमार
कानपुर ( देहात )
Great thought
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