मेरा विद्यालय
पढ़ने की अब उमर हुई,
आये हम विद्यालय में,
ऐसा सुन्दर है विद्यालय,
देखा था खयालों में।
आज मिला यह अवसर हमको,
जानें पहचानें हम इसको,
विद्यालय है ऐसा मन्दिर,
ज्ञान जहाँ पर मिले सभी को।
सुबह सबेरे पहुँच यहाँ पर,
करें याद हम ईश्वर को,
वन्दन करके गुरुआें का,
आगे काम शुरू सब हों।
छोटे - बडे़ बच्चे यहाँ पर,
आपस में सब भाई - बहिन,
एक - दूसरे को देख - देख कर,
सीखें हम सब सरल कठिन।
खेल - खेल में करते हम वो,
ज्ञान हमारा बढ़ाये जो,
ऐसा है मेरा विद्यालय,
प्यार से सब सिखलाता जो।
लेखक
देवेन्द्र प्रताप सिंह,
सहायक अध्यापक,
प्रा0 वि0 भूड़ा,
वि0 क्षे0 - मझगवां,
बरेली (उ0 प्र0)
आये हम विद्यालय में,
ऐसा सुन्दर है विद्यालय,
देखा था खयालों में।
आज मिला यह अवसर हमको,
जानें पहचानें हम इसको,
विद्यालय है ऐसा मन्दिर,
ज्ञान जहाँ पर मिले सभी को।
सुबह सबेरे पहुँच यहाँ पर,
करें याद हम ईश्वर को,
वन्दन करके गुरुआें का,
आगे काम शुरू सब हों।
छोटे - बडे़ बच्चे यहाँ पर,
आपस में सब भाई - बहिन,
एक - दूसरे को देख - देख कर,
सीखें हम सब सरल कठिन।
खेल - खेल में करते हम वो,
ज्ञान हमारा बढ़ाये जो,
ऐसा है मेरा विद्यालय,
प्यार से सब सिखलाता जो।
लेखक
देवेन्द्र प्रताप सिंह,
सहायक अध्यापक,
प्रा0 वि0 भूड़ा,
वि0 क्षे0 - मझगवां,
बरेली (उ0 प्र0)
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