समावेशी शिक्षा
समावेशी शिक्षा
( When difficult work comes in daily routine.
It becomes easy or u can say general.)
एक शिक्षक के लिए यह हमेशा ही चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है कि वह अपनी कक्षा में पढ़ने वाले समस्त छात्रों में किस प्रकार समन्वय बनाता है? क्योंकि कक्षा में तेजी से सीखने वाले मध्यम गति से सीखने वाले और साथ ही साथ बहुत ही धीमी गति से सीखने वाले छात्र होते हैं और इन तीनो के बीच संतुलन बनाना वास्तव में एक बड़ी ही जटिल प्रक्रिया है क्योंकि कई बार जब एक शिक्षक कक्षा कक्ष में पढ़ाता है तो तीव्र गति से सीखने वाला छात्र जल्दी समझ जाता है और मध्यम गति से सीखने वाला छात्र भी उसे समझ जाता है परंतु छात्र जो बहुत ही धीमी गति से सीखता है उस पर शिक्षक को विशेष ध्यान देना होता है तो इसमें एक बात ध्यान देने योग्य हो जाती है कि उस वक्त जब धीमी गति से सीखने वाले छात्र पर विशेष ध्यान दिया जा रहा होता है तो कक्षा कक्ष में यह बात भी ध्यान रखने योग्य हो जाती है कि क्या तेज गति से सीखने वाले छात्र उस क्षण में पढ़ाई में रुचि ले रहे हैं या नहीं ।
एक पूर्णता का भाव उनमें कही आ तो नहीं रहा है तो यह उनके लिए हितकर नहीं होता इसलिए एक शिक्षक को अपनी कक्षा कक्ष में हमेशा सीखने का एक वातावरण बनाए रखने के लिए इस बात का विशेष ध्यान देना आवश्यक हो जाता है कि उसके सभी छात्र कक्षा -कक्ष में पूर्णता का अनुभव न करें बल्कि ज्ञान के जिज्ञासु बने ।
समावेशी शिक्षा एक जरिया है क्योंकि इसमें सभी छात्रों का चाहे वह मंद गति से सीखने वाले हो चाहे मध्यम गति से और चाहे तेज गति से सभी का समावेश किया जाता है
एक शिक्षक अपने शिक्षण में बार बार नवीनता लाता है जिससे कि उसके द्वारा पढ़ाई जा रही पाठ्यवस्तु छात्रों में नीरसता ने लाए बल्कि रोचक और आकर्षक बने । कई बार समस्या छात्रों के अनियमित होने में भी आ जाती है क्योंकि सीखना एक कड़ी से दूसरी कड़ी के रुप में जुड़ा होता है यहां भी एक शिक्षक की फिर अग्नि परीक्षा होती है कि वह अनुपस्थित रहने के कारण छूटी हुई पाठ्यवस्तु को उस अनुपस्थित छात्र को तथा उपस्थित छात्रो के बीच में किस प्रकार समन्वित करता है । समावेशी शिक्षा का अर्थ कुछ लोग समझते हैं कि इसमें विकलांग बच्चों को सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा दी जाती है पर ऐसा नहीं है वास्तव में समावेशी शिक्षा केवल विकलांग बच्चों तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका अर्थ किसी भी बच्चे का बहिष्कार न होने देना भी है क्योंकि भारतीय संविधान में समता स्वतंत्रता सामाजिक न्याय एवम व्यक्ति की गरिमा को समानता के रुप में दर्शाया गया है जिसका अर्थ दूसरे रूप में समावेशी शिक्षा ही है हमारा संविधान हमें किसी प्रकार की विभेद का अधिकार नहीं देता है जिस में जाति वर्ग धर्म एवं लैंगिक आधार पर भेदभाव पूर्णत निषेध है जो अप्रत्यक्ष रूप से समावेशी समाज की स्थापना की ओर इंगित करता है या दिशा देता है समावेशी शिक्षा का सृजन करते समय यह ध्यान रखना आवश्यक हो जाता है कि कक्षा -कक्ष में छात्र छात्राएं के मानसिक और शारीरिक स्तर मै क्या विभिन्नता और क्या समानता है? निम्न बिंदु यह समझने में कुछ सहायता करेंगे ।
1. मानसिक दिव्यांग :- इनका वर्गीकरण तीन भागों में किया गया है
क आंशिक दिव्यांग
ख औसत दिव्यांग और
ग पूर्ण दिव्यांग
2 शारीरिक दिव्यांग:- इनका वर्गीकरण भी तीन भागों में किया गया है
क आंशिक दिव्यांग
ख औसत दिव्यांग और
ग पूर्ण दिव्यांग
इस प्रकार सामान्य और दिव्यांग के बीच एक संबंध समन्वय का वातावरण बनाते हुए अपनी शिक्षण शैली को पूर्णता की ओर ले जाना ही एक नया नवाचार होगा ।
यह सरल नहीं है हालांकि जटिल प्रक्रिया है परंतु अभ्यास के द्वारा इसकी पूर्णता के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है मनुष्य ने अपनी जिज्ञासा शक्ति के आधार पर पुरापाषाण काल मध्य पाषाण काल और नवपाषाण काल से होते हुए आज की इस आधुनिक दुनिया को प्राप्त किया है और भविष्य की ओर लगातार अग्रसर है । सीखने-सिखाने की जब बात आती है तो शिक्षक अपनी भाषा में प्रशंसा का उपयोग करें और हमेशा उनके व्यवहार और बर्ताव के बारे में ही बात करें न कि प्रत्यक्ष रुप से उन पर।
उदाहरण निम्न है आज आप विद्यालय में जो घर के लिए काम करके दिया गया था वह करके नहीं लाए क्या यह व्यवहार सही है या आपने बहुत ज्यादा कक्षा में शोर किया या आप कक्षा में शोर मचा रहे थे क्या आप का बर्ताव या व्यवहार उचित था दोनों बातों में अंतर है
शर्मीले और आसानी से विचलित हो जाने वाले छात्र को ऐसे स्थान पर बिठाना चाहिए जिससे वह शिक्षण प्रक्रिया में आसानी से शामिल हो सके। छात्र -छात्रों की योग्यता के अनुसार उन्हें चिन्हित कर वे जहां है वहां से उन्हें और उनके अधिगम स्तर को बढ़ाते हुए आगे बढ़ाना ही एक शिक्षक के शिक्षण की वास्तविक दक्षता को दर्शाता है ।
छात्रों को उनकी पसंद की अनुसार कार्य देखकर भी उन्हें अपने कार्य के स्वामित्व और स्वयं की शिक्षण प्रक्रिया का दायित्व लेने के लिए एक आधार प्रदान किया जा सकता है व्यक्तिगत शिक्षण आवश्यकताओं को ध्यान में रखना एक कठिन प्रक्रिया है और बड़ी कक्षा के लिए तो यह और भी कठिन हो जाता है लेकिन विभिन्न गतिविधियों द्वारा इसे संभव बनाया जा सकता है
कुछ छात्र -छात्रा छोटे समूह में अपने विचार आसानी से प्रकट कर देते हैं और उनमें आत्मविश्वास अधिक होता है लेकिन संपूर्ण कक्षा के समक्ष अपने विचार या प्रश्न पूछने का उनमें विश्वास नहीं होता इस प्रकार की छात्र- छात्रा की पहचान करते हुए उसे आत्माभिव्यक्ति नवाचार द्वारा उसकी हिचकिचाहट को दूर करते हुए आत्मविश्वास और अधिगम स्तर में वृद्धि करना ही वास्तविक शिक्षण दक्षता को दर्शाता है।
शिक्षण में सभी को शामिल करने के कुछ तथ्य :-
1. एक शिक्षक अपने छात्र में हो रहे परिवर्तन के बारे में जितना अधिक जानकारी रखता है उतना ही उसका शिक्षण प्रभावशाली बनता जाता है छात्र ने कब कोई कार्य नहीं किया, कब कोई कार्य अच्छा किया ,कब उसको मदद की जरूरत है यह भी एक शिक्षण प्रक्रिया का ही भाग है
2 इस संसार में जन्म लेने वाला प्रत्येक व्यक्ति कुछ ना कुछ दक्षता लिए अवश्य होता है एक शिक्षक के रूप में अपने प्रत्येक छात्र छात्रा की योग्यता के अनुसार उसकी ताकत और कमजोरियो को जांचते और परखते हुए सहजता के साथ उनके आत्मसम्मान को बढ़ाना और उनके जीवन को एक नई दिशा देना ही एक मानवता को गौरवान्वित करने वाला कार्य है
3. लचीलापन चाहे शिक्षण में हो या व्यक्ति के दैनिक जीवन में निश्चय ही हर जगह समायोजन होने में सहायता करता है और शिक्षण में तो यह अधिक से अधिक छात्र छात्राओं को समायोजित करने का प्रभावी ढंग होता है ।
4. चाहे परिस्थिति कैसी भी हो छात्रों को अधिक से अधिक यह समझाने की आवश्यकता है कि यदि वह प्रयासरत रहे तो सीख ही जाएंगे ।
5. एक शिक्षक के रूप में आपके शिक्षण में विविधता सीखने सिखाने की प्रक्रिया को एक नई दिशा देगी क्योंकि हर छात्र के सीखने के ढंग मे विविधता होती है कुछ छात्र अच्छे श्रावक होते हैं और कुछ अच्छा जब सीखते हैं जब उन्हें उनके विचारों को व्यक्त करने के लिए कहा जाता है।
6. छात्र -छात्राओं को उनकी योग्यता के अनुसार समूह बनाना और उसी के अनुसार शिक्षण प्रक्रिया को संचालित करना उनके अधिगम स्तर में वृद्धि करेगा और समावेशी शिक्षा की और के लक्ष्य को प्राप्त करें ।
अतः समावेशी शिक्षा में सभी छात्रों को उनकी योग्यता के अनुसार समाहित करते हुए प्रत्येक छात्र के अधिगम स्तर को किस प्रकार उठाया जाए यही इसका मुख्य उद्देश्य है और लक्ष्य है ।।
लेखक
प्रमोद कुमार
सहायक अध्यापक ,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय धावनी हसनपुर ,
विकास खण्ड - बिलासपुर ,
जिला - रामपुर, उत्तर प्रदेश।
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