मेरी बेटी

माँ ओ माँ कह-कहकर,

पीछे-पीछे घूमे।

नन्हें कदमों प्यारी बोली पर,

मन मेरा भी झूमे।।


छोटी सी लली मेरी, 

जीवन दर्पण तू मेरा।

कभी रिझाये बातों से, 

कभी हठ का बसेरा।।


मेरी सिखायी बातें कभी,

मुझको ही सिखाती है।

माँ 'बैड मैनर्स' ऐसे नहीं बोलते की घुट्टी,

मुझको भी पिलाती है।।


कहीं छोड़कर जाऊँ तो,

नानी बन डाँट लगाती है।

फिर जल्दी घर आ जाना कह,

बड़प्पन अपना दिखलाती है।।


कभी बीमार जो मै होऊँ,

नन्हीं डॉक्टर बन जाती है।

बड़े प्यार से दवा खिलाकर,

इन्जेक्शन भी लगाती है।।


वात्सल्य, प्रेम, करुणा का,

सागर है बचपन में।

कान्हा करे नजर ना लगे,

ऐसे परिपक्व बालपन में।।


रचयिता

ज्योति विश्वकर्मा,

सहायक अध्यापिका,

पूर्व माध्यमिक विद्यालय जारी भाग 1,

विकास क्षेत्र-बड़ोखर खुर्द,

जनपद-बाँदा।



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