अपने बेटी का नामांकन कर गुरुजी ने समाज को दिया जबाव, मनोज कुमार सिंह, प्रा० वि० सैरागोपालपुर, पिण्डरा, वाराणसी

★अपनी बेटी का नामांकन कर गुरुजी ने समाज को दिया जबाव★

जी हाँ, मित्रों ऐसा नहीं है कि हम सब शिक्षक विद्यालय में काम नहीं करते हैं इसलिए अपने बच्चे अपने विद्यालय में नहीं पढ़ाना चाहते हैं। बल्कि इसके पीछे है वह बेबस लाचारी, जिसमें बेसिक शिक्षा को पोस्टिंग, ट्रान्सफर, समायोजन और शिक्षक प्रशिक्षण के नाम पर उद्योग बना रखा है। एक शिक्षक को नहीं पता होता है कि वह कितने दिन विद्यालय में शिक्षण कार्य करेगा। या गैरशैक्षणिक कार्यों के चक्रव्यूह में विद्यालय से बाहर चक्कर ही काटता रहेगा। आरोप लगाने वालों को क्या पता कि हम बेसिक शिक्षा के शिक्षक ही हैं जो शून्यवत परिवेश से बच्चों को निकालकर सौ बनाना सिखाते है। यदि कोई इस देश का अन्य विभाग बेसिक शिक्षा जितना प्रतिशत काम करके दिखाता हो तो हम सब को जरूर अवगत करायें। यहाँ तक कि हम अपने वेतन का एक हिस्सा मानवता की रक्षा में लगाकर और अन्य विभागों के कार्यों को भी परिणाम तक पहुँचाते हैं। जब कि हम सब पर अन्य विभाग अधिकार दिखाकर निलम्बन का भय दिखाते हैं।

लेकिन फिर भी हमारे अनमोल रत्न शिक्षक भाई /बहन प्रत्येक बाधा को पार कर बेसिक शिक्षा के उत्थान और शिक्षक के सम्मान के लिए लगातार प्रयासरत है।

तो आइये जानते हैं, भाई मनोज कुमार सिंह जी का संस्मरण:--

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=1894281397516115&id=1598220847122173

भाई  जी एक सप्ताह पूर्व  का एक संस्मरण  साझा करना  चाहता  हूँ -मेरे विद्यालय के गाँव का शिक्षा प्रेरक आया मैंने उससे कहा भाई  नवीन नामांकन हेतु आप भी सहयोग करो न।वह थोड़ा सकुचा कर बोला सर लोगों को प्रेरित करते हैं मगर चुप। मैं बोला क्या मगर?  कहा सर सब कहते हैं कि मास्टर साहब का लड़का तो ..........। मैं बोला हाँ भाई सही मगर क्या करें?

लेकिन अगली सुबह मैं अपनी बेटी को अपने स्कूल पढाने के लिये लेकर जाना शुरू कर दिया। अब सब लोग एकदम उत्साह से कहने लगे कि अब तो हेड सर की बेटी पढ़ने आती है। एडमिशन तेज हो गया अब तक लगभग 70 बच्चों का नवीन नामांकन हो चुका है लोग आकर्षित हुये हैं। काश! समाज के प्रत्येक बच्चों का नामांकन सरकारी स्कूलों में ही होता, तो सभी बच्चे हमारे यहाँ ही पढ़ते। लेकिन अफसोस दोहरी शिक्षा व्यवस्था पर जो शिक्षक को ही दोषी बनवाने के लिए तैयार की गयी है।

आज एक सर बताये। सर हाउस होल्ड सर्वे करने जाता हूँ तो जिनके बच्चे 5 साल तक थे वे कहते थे कि आंगनबाड़ी लापरवाह है अत: अपने बच्चे का नाम एल या यूकेजी में प्राइवेट में लिखा देता हूंँ। आप लोग भी बैठने नहीं देते। तो हम सोचे क्यों न उन बच्चों  को कक्षा 1 में  बैठने दिया जाय उनकी  सूची अलग रजिस्टर पर बना लिया जाय। सब कहे सर बहुत अच्छा होता। इससे  और लोग  हमसे  जुडे़गे। तो फिर  आप सब कनविंस करिये  बिठाया  जाय  उनको  क्योंकि वही हम सब के भविष्य होंगे। लेकिन दूसरी तरफ मध्याह्न भोजन से लेकर अन्य रिस्क भी हमारे सिर पर ही होगे। क्योंकि हम सरकारी सीमाओं में बंधे हैं लेकिन.....।

साभार: मनोज कुमार सिंह
मिशन शिक्षण संवाद वाराणसी

मित्रों क्या आपको नहीं लगता है कि एक बेसिक शिक्षा के शिक्षक को अपने सम्मान की रक्षा के लिए आज अपनी सीमाओं से बाहर जाकर काम करना पड़ता है। फिर भी वह करता है। तो क्या सरकार, शासन और समाज का कर्तव्य नहीं बनता है कि अपने चहेते प्राइवेट और कॉन्वेंट कहे जाने वाले विद्यालयों जैसे अधिकार और कार्य करने की स्वतंत्रता भी हम सबको दे दी जाये।

बेसिक शिक्षा के उत्थान और शिक्षक के सम्मान की उम्मीद के साथ आप सबका मिशन शिक्षण संवाद उ० प्र०

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