लक्ष्य

प्रतिदिन सूरज जैसा उगना

साॅंझ हुई तो ढलते रहना,

कभी अंधेरे में जुगुनू बन

पथ आलोकित करते रहना।


नहीं किसी से हों उम्मीदें

न ही सहारे की रख चाह,

छोटे-छोटे लक्ष्य बनाकर

जीवन पथ पर चलते रहना।


जिसके दामन में जो होगा

वो तुम्हें वही सब दे पाएगा,

पर तुम अपने सरल हृदय से

सबको आनन्दित करते रहना।


हवा बहे प्रतिकूल भले ही

तनिक कदम ना डिगने पाए,

अपने मन की कस्तूरी से

ये जग सुरभित करते रहना।


समय सदा न एक सा रहता

रंग ब‌दलता हर इंसान,

गरल कोई छलकाए जब-जब

सुधा की गागर भरते रहना।

     

रचयिता
आरती रावत पुण्डीर,
प्रधानाध्यापक,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय असिंगी,
विकास खण्ड-खिर्सू,
जनपद-पौड़ी गढ़वाल,
उत्तराखण्ड।



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