तमसो मा ज्योतिर्गमय

तमसो मा ज्योतिर्गमय,

हो चहुँ ओर अभय-अभय।

जब प्रकाश ज्ञान का होता है,

अँधियारा फिर कहाँ रहता है?


अंधकार ही प्रदूषण फैलाता,

लालच सघन फिर होता जाता।

समानुभूति फिर न रह पाती है,

अँधियारी घटा जब छा जाती है।।


खुशहाल धरा को गर करना है,

स्वयं का भी मगन मन करना है।

 तो सद्ज्ञानित दीप जलाने होंगे,

देखो !! फिर सपने सुहाने होंगे।।


मन प्रकाश से जब भर जाता है,

अंधकार फिर न टिक पाता है।

आओ हम ऐसे दीप जलाएँ,

जो जगमग उजियारा लाएँ।।


ज्ञान के दीप, ज्ञान की ज्योति,

मिलें हमें ऐसे निपुण मोती।

अँधियारा जिनसे छँट जाए,

एकत्व प्रकाश यहाँ छा जाए।।


विशेष-निपुण मोती का अर्थ  बच्चों से है, जो आज की शिक्षा से जाग्रत होकर भविष्य में संसार को दिशा देने में सक्षम होंगे।


रचयिता 
प्रतिभा भारद्वाज,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यामिक विद्यालय वीरपुर छबीलगढ़ी,
विकास खण्ड-जवां,
जनपद-अलीगढ़।



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