विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस

कितना देती है प्रकृति हमको,

क्यों भान नहीं इसका तुमको।

कितना इससे दुर्व्यवहार करोगे,

देती साँसों का ये आधार है सबको।।


संरक्षण इसका मानव बहुत है जरूरी,

वरना हो जाएगी जीवन से दूरी।

पछताने के सिवा कोई काम ना होगा,

सारी आवश्यकताएँ इससे होती हैं पूरी।।


प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करो,

स्वच्छ वायु से दूरी कभी मत करो।

सतत वनों की प्रथा तुम अपनाओ,

पुन:उपयोग का वादा तुम करो।।


जीवाश्म ईंधन का संरक्षण आवश्यक,

निरंतर होती जल की कमी है घातक।

खत्म हो जाएँगे जो प्राकृतिक संसाधन,

जीवन जीने के खत्म हो जाएँगे कारक।।


जैव विविधता की सुरक्षा करनी है,

अपनी मनमानी अब नहीं करनी है।

प्रकृति को संरक्षित करने का लो वचन,

अपनों की बर्बादी और नहीं सहनी है।।


रचयिता

नम्रता श्रीवास्तव,

प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जनपद-बाँदा।

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