220/2024, बाल कहानी -02 दिसम्बर
बाल कहानी - प्यासे शहर
----------------------
पहाड़ी मुनिया दौड़ती हुई नानी के पास आया और हाँफती हुई बोली, "नानी! आपने आज का समाचार पत्र देखा!" नानी जब तक समझे, मुनिया आगे बोल पड़ी, "शिमला में पानी खत्म हो गया। दूसरे स्थान से टैंकर में भरकर पानी शिमला में ले जाया जा रहा है।" मुनिया के मामा शिमला में नौकरी करते हैं। नानी भी चिन्तित हो उठी, "आज शिमला का यह हाल है, कल किसी दूसरे शहर का यह हाल होगा। नहीं! अब मामा क्या करेंगे? पानी के बिना उनका बुरा हाल होगा। उनके घर के सारे काम कैसे होंगे? पेड़ों को भी पानी मिलना बन्द हो जायेगा!"
बेचारी मुनिया रुआँसी हो गयी। तब तक राजू भी वहीं आ गया। आज मुनिया की हालत देखकर उसे बड़ा दु:ख हुआ। पता चलने पर उसने मुनिया को सांत्वना दी, "परेशान मत हो मुनिया! एकाध दिन में शिमला में पानी मिलने लगेगा।" राजू की दादी गहरी चिन्ता में डूबी हुई थी। बच्चों ने कहा, दादी! आप भी तो कुछ बोलो..।" दादी ने कहा, "ठीक है तो बच्चों! आज एक सच्ची कहानी सुनो- बहुत समय पहले जब भारत में अंग्रेजों का राज्य था तो उन्होंने गर्मी से परेशान होकर शिमला को अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बना लिया। हरा-भरा शिमला बर्फ से ढकी पहाड़ियाँ, सब कुछ बहुत सुन्दर था। लोग गर्मियों में शिमला घूमने जाते और वहाँ के रमणीक वातावरण में गर्मी भूलकर मौज मनाते थे। शिमला की खूबसूरत वादियाँ, द रिज कुफरी, नाल देहरा, फागू कसौली आदि पर्यटकों का मन मोह लेती हैं। धीरे-धीरे पच्चीस हजार की जनसंख्या संभालने वाले शिमला पर जनसंख्या का दबाव पड़ने लगा। बिना योजना के शहर बढ़ने लगा। जंगल काटकर लोगों के रहने की व्यवस्था होने लगी। नगरीकरण के भूत ने उसके मूल प्राकृतिक स्वरूप और जलवायु को भी प्रभावित किया है। पेड़ कटेंगे तो फिर वर्षा कहाँ से होगी? और वर्षा के अभाव में भूमिगत जल का सन्तुलन भी तो नष्ट हो जायेगा। यही कारण है कि वहाँ की नदियाँ भी धीरे-धीरे सूख रही हैं। तापमान का स्तर भी बढ़ रहा है। ठण्डा शिमला धीरे-धीरे गर्म हो रहा है और बात सिर्फ शिमला की नहीं है, वहाँ पानी खत्म हुआ। लोग पानी के लिए लाइन में लगे हैं। यही हाल अन्य स्थानों का भी होने वाला है, यदि हम समय से नहीं चेते। हमें पहाड़ को पहाड़ ही रहने देना है।" मुनिया और राजू एक साथ चिल्लाये, बताओ दादी! इन्हें बचाने के लिए क्या करना चाहिए?" दादी गम्भीरता से बोली, "बच्चों! हमें पेड़ों का संरक्षण और वृक्षारोपण एक त्योहार की भाँति करना है। पानी का अपव्यय रोकना है। जितना आवश्यक हो, उतना ही पानी खर्च करें। साथ ही बेकार जाते पानी का सदुपयोग भी करना है। जैसे- वॉटर प्यूरीफायर के पानी को एकत्र कर उसके द्वारा पौधों की सिंचाई की जा सकती है। ए० सी० के पानी का भी उपयोग सफाई के कार्यों में किया जा सकता है। कारों को धोने के बजाय उन्हें साफ व गीले कपड़े से पोंछा जा सकता है। घर के गन्दे कोनों की धुलाई के स्थान पर वहाँ पोंछा लगाया जा सकता है। वृक्षारोपण द्वारा हम वर्ष के आगमन को निश्चित कर सकेंगे तथा पानी का दुरुपयोग बन्द कर जल संरक्षण भी कर सकेंगे। छत पर टंकी बनवाकर भी वर्षा का जल संरक्षित किया जा सकता है, ताकि शिमला का जो हाल हुआ, वह न तो शिमला के संदर्भ में दोहराया जाये और न ही किसी अन्य स्थान को ऐसी समस्या का सामना करना पड़े।" राजू और मुनिया ध्यान से दादी की बातें सुन रहे थे। आज उन्हें अनोखा आनन्द आ रहा था। इसी बीच राजू को कुछ ध्यान आया। उसने दादी से कहा, दादी! चलो, बाजार से कुछ जरूरी सामान लायें। मुझे अपने लिए पेंसिल, कलर पेंसिल और शार्पनर खरीदना है।"
"ठीक है" दादी ने कहा और उठकर कमरे के अन्दर से सामान लाने के लिए कपड़े का एक थैला ले आयी। "दुकान वाला पॉलिथीन में समान देगा न नानी! फिर यह थैला क्यों?" नानी हँसी, "कपड़े का थैला इसलिए ताकि हम बेकार के कूड़े से बच सकें। पॉलिथीन कूड़ा है। हाँ, मुनिया! यह मैं तुम्हें अगली कहानी में बताऊँगी, तब तक बाजार चलें।" राजू और मुनिया खुश हो दादी के साथ बाजार को चल दिए।
#संस्कार_सन्देश -
प्रकृति से छेड़-छाड़ मनुष्य मात्र के लिए विनाशकारी है।
कहानीकार-
#डॉ०_सीमा_द्विवेदी (स०अ०)
कम्पोजिट स्कूल कमरौली
जगदीशपुर (अमेठी)
कहानी वाचन-
#नीलम_भदौरिया
जनपद-फतेहपुर (उ०प्र०)
✏️संकलन
📝टीम #मिशन_शिक्षण_संवाद
#दैनिक_नैतिक_प्रभात
Comments
Post a Comment